बेटी का हक लघुकथा| Beti ka haq

बेटी का हक

बेटी का हक लघुकथा| Beti ka haq
छोटी बेटी सनाया से बात करते -करते रामनाथ बाबू चिल्ला पड़े, " मैं बेऔलाद हूँ क्या जो इस तरह की तुम सलाह दे रही हो। अरे बेटी को ब्याह दिया मेरा काम खत्म। हमने उसके पूरे जिंदगी का ठेका ले रखा है क्या? थोड़ा बहुत जोड़-जार कर रखा हूँ ताकि आने वाले समय में बेटे को कोई तकलीफ ना उठाने पड़े।

पिताजी की बातें सुन सनाया सन्न हो सोच में पड़ गई। ओह! पिताजी बेटा और बेटी में कितना फर्क रखते है। क्या बेटा ही औलाद कहलाता है,बेटी नहीं ? आज दीदी इतनी मुसीबत में हैं,रहने को छत नहीं।

सोचते-सोचते सयाना उबल पड़ी, " आपको जो सोचना हैं सोचिए पिताजी।पर मैं तो दीदी को उनका हक दिलवाकर मानूंगी। यह पैतृक संपत्ति है। आपने नहीं उपार्जन किया है। इस संपत्ति में आपके बेटे और बेटी का पूरा हक बनता है।कल ही मैं वकील को बुलवाती हूँ । आपको बेटी का हक देना होगा।

बेटी की बात रामनाथ बाबू ह्क्के- बक्के हो गये। कानूनी हक के विरोध में कोई जवाब न सूझा।

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Priyanka vallari
रानी प्रियंका वल्लरी
बहादुरगढ हरियाणा

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