आओ पांच दिन खुशियों वाले आस्था का पर्व दीपावली का उत्सव मनाए/deepawali special article in hindi
आओ पांच दिन खुशियों वाले आस्था का पर्व दीपावली का उत्सव मनाए
दीपावली पर्व को दिशानिर्देशों का पालन करते हुए भाईचारे एकता में खुशियों की ऐसी मिठास को घोलें कि आने वाला हर दिन दीपावली महसूस हो - एडवोकेट किशन भावनानीगोंदिया - वैश्विक स्तरपर अकेला भारत ही ऐसा देश है जहां सदियों से त्योहारों आध्यात्मिक अवसरों सामाजिक रीति-रिवाजों इत्यादि अनेक पर्वों को मजबूत आस्था की भावनाओं की मिठास घोलकर ऐसे मनाते हैं जैसे वह मान्यताएं हमारे सामने ही हुई थी! याने जिन मान्यताओं के आधार पर उत्साही पर्व मनाए जाते हैं उनके हम आंखों देखे गवाह हैं!! यह है हम भारतीयों का जज्बा! चूंकि 22 अक्टूबर 2022 को दीपावली के प्रथम दिन धनतेरस की शुरुआत हो गई है और हम लगातार पांच दिवसीय नर्क चतुर्दशी मुख्य दीपावली पर्व गोवर्धन पूजा से होते हुए अंतिम दिवस भाई दूज पर समापन करेंगे इसीलिए आज हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से इन पांच दिनों की चर्चा करेंगे।
साथियों बात अगर हम इस पर्व के मनाए गए प्रथम दिवस धनतेरस की करें तो बता दें कि इस बार धनतेरस 22,23 दोनों दिन मनाई जा रही है चूंकि आस्था का प्रतीक पर्व है इसलिए हम खुशियों के इस पर्व को अगर 6 दिन भी मनाए तो मेरे विचारों से सबके लिए खुशियां ही होगी परंतु चूंकि भारत में नए वेरिएंट एक्सबीबी और बीएफ.7 नें पैर पसारना शुरू कर दिया है इसलिए हमें सतर्कता से बाजारों में उचित कोविड व्यवहार का पालन करते हुए रहना होगा हालांकि धनतेरस के दिन बाजारों में अधिक भीड़ भाड़ और नियमों से पीछा छुड़ाते हुए अत्यधिक लोग दिखें परंतु मेरा मानना है उसे हल्के में कतई नहीं लेना चाहिए।
साथियों बात अगर हम दीपावली पर्व के पांच दिनों के उत्सव की करें तो पहला दिन हमने धनतेरस का मनाए हैं बाकी बचे 4 दिन अभी हम बनाएंगे।पहले दिन को धनतेरस कहते हैं। दीपावली महोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है। इसे धन त्रयोदशी भी कहते हैं। धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज, धन के देवता कुबेर और आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि की पूजा का महत्व है। इसी दिन समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे और उनके साथ आभूषण व बहुमूल्य रत्न भी समुद्र मंथन से प्राप्त हुए थे। तभी से इस दिन का नाम धनतेरस पड़ा और इस दिन बर्तन, धातु व आभूषण खरीदने की परंपरा शुरू हुई। धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी, कुबेर एवं धन्वंतरि की एक साथ पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आरोग्यता के साथ सुख-समृद्धि भी प्राप्त होती है तथा लक्ष्मी की कृपा बनती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन चिकित्सा जगत के गुरु देवताओं के वैद्य भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे। साथ ही मां लक्ष्मी, इंद्र और कुबेर भी प्रकट हुए थे।
दूसरे दिन को नरक चतुर्दशी, रूप चौदस और काली चौदस कहते हैं। इसी दिन नरकासुर का वध कर भगवान श्रीकृष्ण ने 16,100 कन्याओं को नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजाई जाती है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उबटन एवं स्नान करने से समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं इस दिन से एक ओर मान्यता जुड़ी हुई है जिसके अनुसार इस दिन उबटन करने से रूप व सौंदर्य में वृद्धि होती है।तीसरे दिन को दीपावली कहते हैं। यही मुख्य पर्व होता है। दीपावली का पर्व विशेष रूप से मां लक्ष्मी के पूजन का पर्व होता है। कार्तिक माह की अमावस्या को ही समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं जिन्हें धन, वैभव, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि की देवी माना जाता है। अत: इस दिन मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए दीप जलाए जाते हैं ताकि अमावस्या की रात के अंधकार में दीपों से वातावरण रोशन हो जाए। इस दिन रात्रि को धन की देवी लक्ष्मी माता का पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए एवं घर के प्रत्येक स्थान को स्वच्छ करके वहां दीपक लगाना चाहिए जिससे घर में लक्ष्मी का वास एवं दरिद्रता का नाश होता है। इस दिन देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश तथा द्रव्य, आभूषण आदि का पूजन करके 13 अथवा 26 दीपकों के मध्य 1 तेल का दीपक रखकर उसकी चारों बातियों को प्रज्वलित करना चाहिए एवं दीपमालिका का पूजन करके उन दीपों को घर में प्रत्येक स्थान पर रखें एवं 4 बातियों वाला दीपक रातभर जलता रहे, ऐसा प्रयास करें। दूसरी मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान रामचन्द्रजी माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर घर लौटे थे। श्रीराम के स्वागत हेतु अयोध्यावासियों ने घर-घर दीप जलाए थे और नगरभर को आभायुक्त कर दिया था। तभी से दीपावली के दिन दीप जलाने की परंपरा है। 5 दिवसीय इस पर्व का प्रमुख दिन लक्ष्मी पूजन अथवा दीपावली होता है।
चौथे दिन अन्नकूट या गोवर्धन पूजा होती है। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट उत्सव मनाना जाता है। इसे पड़वा या प्रतिपदा भी कहते हैं। खासकर इस दिन घर के पालतू बैल, गाय, बकरी आदि को अच्छे से स्नान कराकर उन्हें सजाया जाता है। फिर इस दिन घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन बनाए जाते हैं और उनका पूजन कर पकवानों का भोग अर्पित किया जाता है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि त्रेतायुग में जब इन्द्रदेव ने गोकुलवासियों से नाराज होकर मूसलधार बारिश शुरू कर दी थी, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गांववासियों को गोवर्धन की छांव में सुरक्षित किया। तभी से इस दिन गोवर्धन पूजन की परंपरा भी चली आ रही है।
पांचवें दिन को भाई दूज और यम द्वितीया कहते हैं। भाई दूज, पांच दिवसीय दीपावली महापर्व का अंतिम दिन होता है। भाई दूज का पर्व भाई-बहन के रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने और भाई की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है। रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहन को अपने घर बुलाता है जबकि भाई दूज पर बहन अपने भाई को अपने घर बुलाकर उसे तिलक कर भोजन कराती है और उसकी लंबी उम्र की कामना करती है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने के लिए उनके घर आए थे और यमुनाजी ने उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराया एवं यह वचन लिया कि इस दिन हर साल वे अपनी बहन के घर भोजन के लिए पधारेंगे। साथ ही जो बहन इस दिन अपने भाई को आमंत्रित कर तिलक करके भोजन कराएगी, उसके भाई की उम्र लंबी होगी। तभी से भाई दूज पर यह परंपरा बन गई।
साथियों बात अगर हम भारतीय विशेषता अनेकता में एकता भिन्न-भिन्न समुदायों के दिवाली की खुशियों में सोने पर सुहागे की करें तो, अलग-अलग समुदायों में रोशनी के त्योहार का जिक्र-राम भक्तों के अनुसार दीपावली वाले दिन अयोध्या के राजा श्रीराम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध कर के अयोध्या लौटे थे,उनके लौटने कि खुशी यह पर्व मनाया जाने लगा, जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को हुआ था, कृष्ण भक्तों की मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था, इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और लोगों ने प्रसन्नतापूर्वक घी के दीये जलाएं. सिखों के लिए भी दीपावली महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था और दिवाली ही के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को कारागार से रिहा किया गया था।
साथियों बात अगर हम माननीय पीएम के दीपावली पर्व 24 अक्टूबर को अयोध्या में दीपावली मनाने की करें तो 23 अक्टूबर 2022 को अयोध्या में होंगे। इस वर्ष, दीपोत्सव का छठा संस्करण आयोजित किया जा रहा है और यह पहली बार है जब पीएम इस समारोह में व्यक्तिगत रूप से भाग लेंगे। इस अवसर पर 15 लाख से अधिक दीये जलाए जाएंगे। दीपोत्सव के दौरान विभिन्न राज्यों के विभिन्न नृत्य रूपों के साथ पांच एनिमेटेड झांकियां और ग्यारह रामलीला झांकियां भी प्रदर्शित की जायेंगी। पीएम भव्य म्यूजिकल लेजर शो के साथ-साथ सरयू नदी के तट पर राम की पैड़ी में 3-डी होलोग्राफिक प्रोजेक्शन मैपिंग शो भी देखेंगे।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आओ पांच दिन खुशियों वाले आस्था का पर्व दीपावली का उत्सव मनाए महोत्सव धनतेरस से शुरू हुआ नरक चतुर्दशी मुख्य पर्व दीपावली गोवर्धन पूजा से होते हुए भाई दूज पर समाप्त होगा।दीपावली पर्व को दिशानिर्देशों का पालन करते हुए भाईचारे एकता में खुशियों की ऐसी मिठास घोलें कि आने वाला हर दिन दीपावली महसूस हो।
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-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र