खेड़े की रमणी
खेडे़ में रहती रमणीखेड़े में ही मिट जाती है
पितृसत्ता से बंधे हुए
जीवन को जीते जीते
पतिव्रता जीवन जी जाती है
खेडे़ में रहती रमणी
खेड़े में ही मिट जाती है
प्रात: काल कार्य से लगती,
तो लगी रहती रात तक
पता नहीं उसे खुद का
जीवन, क्या है
क्या उसकी अभिलाषा है
पता नहीं उसको अस्तित्व अपना
खेडे़ में रहती रमणी
खेड़े में ही मिट जाती है
मिट्टी के आँगन मे,
मिट्टी सी कच्ची ह्रदय लिए ,
पता नहीं उसे कुछ
सामाजिक बंधनों से उसे
त्याग की मूरत बना दी जाती है
गृहस्थी है जीवन उसका
गृहस्थी में ही खुद को खो देती है
जीवन में जो कुछ सुख, दुख मिलता उसे
खलिहानो में रमणियो संग बाट लेती
खेड़े की रमणीय छोटे छोटे खुशियों में
अपनी खुशी ढूंढ लेती है
नहीं मांगती बड़ा कुछ भी
थोड़े में ही खुश हो लेती है
त्योहारों में झूम कर नाच गा लेती है
नही रखती कोई अभिलाषा मन मे
मांग कोई न करती
सम्मान, समानता, स्नेह से तड़पती
खेडे़ में रहती रमणी
खेड़े में ही मिट जाती है
मांग कोई न करती है
खेडे़ में रहती रमणी
Comments
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com