पापा मैं बोझ नहीं
September 24, 2022 ・0 comments ・Topic: mainuddin_Kohri poem
विश्व बालिका दिवस पर विशेष
💓 पापा मैं बोझ नहीं 💓
मम्मी - पापा
मैं बेटी हूँ आपकीपर , क्या मैं ?
आप के लिए पराया धन थी
आप के लिए भार थी
मुझे लेकर कितनी आशंकाएं थी
तुम बड़ी हो रही हो
अब घर के अंदर रहा करो
मेरे होने का आपको डर
मेरे लिए तलाश रहे थे वर
अच्छे वर की तलाश में
घर-दुकान् गिरवी रखने की नोबत
अपनी बेटी से ही कहते रहते
तेरे लिए वर ढूंढते -ढूंढते ........
क्या बीतती थी मुझ पर
जब मुझे देखने वाले आते थे
मुझे नुमायश की तरहां परोसा जाता
उनकी डिमांड सुन कर
आपकी क्या हालत हुआ करती थी
आपका तनाव मुझ से देखा नही जाता था
आपकी बेटी होकर भी
मैं आप पर कितनी बोझ थी
यह सब सह - सह कर
आप अपनी ही बेटी से मुक्ति पा
चैन की नींद सोना चाह रहे थे
मैं भी सोचती , जिस घर में पैदा हुई
जब वो घर भी मेरा नहीं
तो , फिर वो अंजान घर कैसा होगा ?
आपने मुझ पर लाख पहरे - पाबन्दियाँ लगाई
पर , आपने मुझे पढाया - लिखाया
वो ही आज मेरे काम आया
आपकी पढ़ी - लिखी बेटी ने ही
आपके ऋण को चुका कर
आपको सारे भार से मुक्त कर दिया है
पापा अब आप पर ,आपकी बेटी बोझ नहीं है
क्योंकि अब मैं , पराया धन नहीं हूँ
अब मेरा अपना घर है ! !! !!!
About author
मईनुदीन कोहरी "नाचीज़ बीकानेरी "मोहल्ला कोहरियान् ,बीकानेर ( राज .)मो.9680868028
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