बस्ते के बोझ से दबा जा रहा बचपन

September 01, 2022 ・0 comments

बस्ते के बोझ से दबा जा रहा बचपन

नन्हीं सी पीठ पर बस्ते का बोझ है
दब रहा है बचपन लूट पाट रोज है

बरते व पाटी पर लिखना सिखाया
गुरूजी नें हमको ककहरा पढ़ाया

गुरुओं का आदर माँ पिता की सेवा
करोगे अगर तो मिलेगा मेवा

चुनकर के लिखते लगाते सवाल थे
हम भी तो एम ए कर गए पास थे

देशज थी डिग्री पाठ मगर वही था
टूटनें से बची पीठ बचपन सुखी था

फ़ीसआधी माफ़ बेहतर व्यवस्था
छात्रों का फंड कोई मिलता सुरक्षा

लूटपाट मच गई सारे स्कूल में अब
बस्ते के बोझ से दबा जा रहा बचपन।।

About author

vijay-lakshmi-pandey
विजयलक्ष्मीपाण्डेय
स्वरचित मौलिक रचना
आजमगढ़,उत्तर प्रदेश

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