समाज की मोटी खाल
September 28, 2022 ・0 comments ・Topic: Mahesh_kumar_keshari vyang
व्यंग्य
समाज की मोटी खाल
हमारे समाज की खाल बहुत मोटी है l उसमें रहने वाले लंपट किस्म के शिक्षकों की उससे भी ज्यादा मोटी l इनकी तुलना अगर गैंड़े की खाल से की जाई तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी l जो अपने घर के या अपने व्यक्तिगत तनावों को मासूम नौनिहालों पर आजमाते हैं l इनके अलावा हमारे समाज में कुछ लंपट किस्म के अमानुषिक प्रवृति की जातियाँ भी पाई जाती हैं l जिनके लिये दलित और वाल्मीकि समाज अंत्यज हैं l इनको समाज में आज भी जाति सूचक नामों से पुकारा जाता है l ये लंपट और अराजक जातियाँ ही समता मूलक समाज के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा हैं l इनके लिये अन्न उपजाने वाला किसान - मजदूर अछूत हैं l लेकिन , इनका पेट जिस अन्न से भरता है , वो पवित्र है l
मिट्टी के दीये बननाने वाला अछूत है , दीया पवित्र है l इसी तरह माली अछूत है l माली द्वारा बनाई जाने वाली माला पवित्र है l
ये भी सच है कि शिक्षक आदि - अनादिकाल से छात्रों के साथ सामाजिक भेदभाव करते रहें हैं l गुरूदक्षिणा में अँगूठा लेने वाला " तथाकथित शिक्षक " को आज भी समाज पूर्वाग्रही और सामाजिक विषमता पैदा करने वाले के तौर पर पहचानता है l वो आदर्श गुरू नहीं है l मुझे लगता है कि हमारे आज के शिक्षकों में द्रोणाचार्य की क्रूर आत्मा ही निवास करती है l जिनकी क्रूरता इस बात से झलकती है कि वो एक अबोध बच्चे को केवल घड़े से पानी निकालकर पीने भर से जान से मार देते हैं l कभी लगता है , इन शिक्षकों में ड्रेकुला या नरपिशाच की आत्मा निवास करती है l जो इन बच्चों को मार देता है l ऐसे ड्रेकुला की आत्मायें जमींदारों या क्रूर शासकों की रही होगी l जो जातीय गौरव और श्रेष्ठता के नाम पर कत्लेआम मचाती थी l
हमारे विधालयों में मार- खाने और शिक्षकों द्वारा पीटे जाने का भय हमारे स्कूली जीवण में भी रहा था l स्कूल ,पहुँचने पर कौन से टीचर कौन से विषय को पढ़ाते हैं l इस पर चर्चा होने के बजाए इस पर चर्चा ज्यादा होती थी , कि कौन से टीचर कितना ज्यादा पीटते हैं l शुरूआत में हम बच्चों को सातवीं - आठवीं तक बहुत पनिशमेंट मिलती थी l
दिवंगत जुगाड़ू जी शुरूआती दौर में करीब प्राथमिक विधालय से हमारे सहपाठी मित्र रहें थें l उनका एक लेटर नौवीं कक्षा में हमारे गणित के एक टीचर चौबे जी ने पकड़ लिया था l फिर जुगाडू जी को खूब ठोंका l भरी क्लास में सभी के सामने भारी बेइज्जती हुई l अगले दिन हमारे क्लास में हम लड़कों के ग्रुप में मीटिंग फिक्स हुई l जूगाडू जी हमारे ग्रुप के छैला बाबू थेंं l क्लास के माॅनिटर भी वही थें l हमारे नेता के ऊपर हमला ! हमें ये नागवार गुजरा l
हम सबने गणित के टीचर चौबे जी को सबक सीखाने की तरकीब सोची l चौबे जी रोज शाम को चौक से चाय पीकर अपने घर जाते थें l एक दिन पूर्व निधारित योजना के तहत हम मित्रों ने शाम को अँधेरे का फायदा उठाकर चौबे जी को चीनी का मोटा बोरा पहनाकर इतनी सुताई की कि वो महीनों हल्दी वाला दूध पीते रहे l
फिर , दूबारा उन्होंने क्लास में किसी लड़के को नहीं सुता l तो इस तरह हम छात्रों ने चौबे सर की सुताई की थी l यहाँ , ये प्रतीकात्मक तौर पर बताया जा रहा है , जिससे लंपट और क्रूर किस्म के प्रेत्माधारी आधुनिक जीवित लेकिन क्रूर शिक्षकों की पिटाई आज भी शाम को चीनी का मोटा बोरा ओढ़ाकर जुगाडू जी की आत्मा सुताई करती है l कई बार हमारे और अन्य विधालयों के आताताईयी क्रूर शिक्षकों की पिटाई शाम - शाम को होती रही है l जुगाडू जी का भूत आताताईयों को लाठी से सूतता है l
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