पहाड़ी अंजीर - बेडू पाको बारमासा
भारत को प्रकृति का वरदान प्राप्त औषधि वनस्पतियों आयुर्वेद संजीवनी की गाथा
औषधि वनस्पतियों आयुर्वेद का एक प्राचीन चिकित्सा विज्ञान है - रामायण में भी संजीवनी बूटी के वर्णन को रेखांकित करना जरूरी - एडवोकेट किशन भावनानीगोंदिया - भारत को हजारों वर्ष पूर्व से ही औषधि वनस्पतियों आयुर्वेद के प्राकृतिक संजीवनी सेहत का खज़ाना मिला हुआ है, इसीलिए ही वर्तमान प्रौद्योगिकी युग में जहां हर उपाय पर विज्ञान ने अपना स्टम्प लगा दिया है परंतु उसके बावजूद आज भी विज्ञान, प्रकृति और उसके द्वारा प्रदत्त कुदरती छवि की, विज्ञान बराबरी नहीं कर सका है। सूरज का तेज, चांद की रोशनी और अपार शक्तिशाली वनस्पतियों औषधियों और आयुर्वेद का आज भी प्राचीन चिकित्सा विज्ञान बना हुआ है। जिस बीमारी का इलाज इस प्रौद्योगिकी युग में बड़े बड़े ऑपरेशनों से नहीं हुआ उसका इलाज प्राचीन चिकित्सा विज्ञान के बल पर हुआ है ऐसे भी कई उदाहरण सामने आए हैं, इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से इस प्राचीन चिकित्सा विज्ञान पर चर्चा करेंगे।
साथियों बात अगर हम प्राचीन चिकत्सा विज्ञान में संजीवनी की करें तो, संजीवनी एक वनस्पति का नाम है जिसका उपयोग चिकित्सा कार्य के लिये किया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस है और इसकी उत्पत्ति लगभग तीस अरब वर्ष पहले कार्बोनिफेरस युग से मानी जाती हैं। रामायण में भी संजीवनी बूटी का वर्णन देखने को मिलता है। जब रामायण में लक्ष्मण जी मुर्छित हो गये थे, उस समय उनके जीवन को बचाने के लिए हनुमान जी पूरा का पूरा पर्वत उठाकर ले आए थे। पूरा पर्वत उठाने के पीछे कारण यह था कि हनुमान जी को संजीवनी बूटी की पहचान नही थी, इसलिए उन्होंने लक्ष्मणजी की जान बचाने के लिए पूरा पर्वत ही उठा लिया था।याने संजीवनीके लिये हनुमान जी ने हिमालय को ही उठा लिया और लंका लाये।
साथियों यह उत्तरप्रदेश,उत्तराखंड और उड़ीसा सहित भारत के लगभग सभी राज्यों में पाई जाती है। संजीवनी का उल्लेख पुराणों में भी है। आयुर्वेद में इसके औषधीय लाभों के बारे में वर्णन है। यह न सिर्फ पेट के रोगों में बल्कि मानव की लंबाई बढ़ाने में भी सहायक होती है। हम अक्सर कई स्वास्थ्य समस्याओं को नजर अंदाज करते रहते हैं, वहीं कुछ गंभीर हो सकती हैं और लंबे समय में हमें नुकसान पहुंचा सकती हैं, कुछ आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।आयुर्वेद औषधि वनस्पतियों का एक प्राचीन चिकित्सा विज्ञान है, ये एक अच्छा और स्वस्थ जीवन जीने में मदद करता है।आयुर्वेद में शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए प्रैक्टिस और जीवन शैली की आदतें हैं। इसके साथ ही जड़ी-बूटियों वनस्पतियों फलों और औषधियों की उपस्थिति आयुर्वेद को बिना किसी दुष्प्रभाव के रोग को ठीक करने का सबसे प्राकृतिक साधन बनाती है।
साथियों आयुर्वेद को सेहत का खजाना कहा जाए तो गलत नहीं होगा। हर जड़ी-बूटी वनस्पति फल अपने भीतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के कई गुण समेटे हुए है। वैसे तो आयुर्वेद में लगभग 1,200 औषधीय जड़ी-बूटियों का वर्णन है, लेकिन यहां उन जड़ी बूटियों के बारे में बताया गया है जो आसानी से उपलब्ध हो सकें। इनमें से कई तो ऐसी हैं जिनके पौधे लोग घरों में बड़े शौक से लगाते हैं।
साथियों बात अगर हम माननीय पीएम द्वारा दिनांक 28 अगस्त 2022 को मन की बात की 92 वीं कड़ी में पहाड़ी अंजीर की करें तो अब हर व्यक्ति का ध्यान इस ओर खिंच गया है, हालांकि यह भी भारतीय प्राचीन चिकित्सा विज्ञान की एक वनस्पति औषधि या फल कहा जा सकता है परंतु माननीय पीएम के उल्लेख करने पर सभी का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ है पीआईबी के अनुसार उन्होंने कहा था, कई सराहनीय प्रयासों में हमारे, एक और पहाड़ी राज्य, उत्तराखंड में भी देखने को मिल रहे हैं। उत्तराखंड में कई प्रकार के औषधि और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। जो हमारे सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होती हैं। उन्हीं में से एक फल है-बेडू। इसे, हिमालयन फिग के नाम से भी जाना जाता है। इस फल में, खनिज और विटामिन भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं। लोग, फल के रूप में तो इसका सेवन करते ही हैं, साथ ही कई बीमारियों के इलाज में भी इसका उपयोग होता है। इस फल की इन्हीं खूबियों को देखते हुए अब बेडू के जूस, इससे बने जैम, चटनी, अचार और इन्हें सुखाकर तैयार किए गए ड्राई फ्रूट को बाजार में उतारा गया है। पिथौरागढ़ प्रशासन की पहल और स्थानीय लोगों के सहयोग से, बेडू को बाजार तक अलग-अलग रूपों में पहुँचाने में सफलता मिली है। बेडू को पहाड़ी अंजीर के नाम से ब्रांडिंग करके ऑनलाइन मार्केट में भी उतारा गया है। इससे किसानों को आय का नया स्त्रोत तो मिला ही है, साथ ही बेडू के औषधीय गुणों का फायदा दूर-दूर तक पहुँचने लगा है।
साथियों बात अगर हम पहाड़ी अंजीर और बेडू पाको बारमासा की करें तो, बेड़ू पाको बारामासा गाना उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोकगीत है, जिसका मतलब है कि बेड़ू ऐसा फल है जो पहाड़ों में 12 महीने पकता है। बेड़ू उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पाया जाने वाला जंगली फल है, जिसे पहाड़ी अंजीर भी कहते हैं। पहाड़ी फल बेड़ू का अब लोग घर-घर स्वाद ले पाएंगे एक अधिकारी की जानकारी के अनुसार पहाड़ी उत्पादों को विश्व स्तर तक पहचान दिलाने की पहल के अंतर्गत ही बेड़ू से अलग-अलग उत्पाद बनाकर ‘हिलांस’ के बैनर तले पूरे देश में बेचने की तैयारी जिला प्रशासन कर रहा है। बेड़ू पहाड़ों में काफी मात्रामें मिलने वाला स्वास्थ्यवर्धक और स्वाद से भरपूर फल है। अब पहाड़ों में प्रकृति से निःशुल्क उपहार के रूप में मिले इस फल से अलग-अलग उत्पाद बनाकर पहाड़ के उत्पादों को एक नई पहचान तो मिलेगी ही, साथ ही इससे रोजगार के नए आयाम भी विकसित होंगे।
साथियों एक जानकारी के अनुसार, बेड़ू में जरूरी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। यह फल औषधीय गुणों से भी भरपूर है। यह कई बीमारियों से लड़ने में मददगार है। इसमें विटामिन सी, प्रोटीन, वसा, फाइबर, सोडियम, फास्फोरस, कैल्शियम और लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। शरीर के विकास के लिए यह सभी तत्व जरूरी हैं. साथ ही अनेकों बीमारियां भी इस फल के सेवन से दूर होती हैं। अनेक प्रदेशों में ऐसे कई फल हैं, जो अब लुप्त हो रहे हैं. यह फल जंगलों में तो खूब उगते हैं, लेकिन उनका व्यावसायिक उपयोग बहुत ही कम होता है। बेड़ू भी उन्हीं फलों में से एक है, जो उगता तो खूब है लेकिन उसका उपयोग बहुत कम होता है। ठीक उसी तरह अनेक प्रकार की जड़ी बूटियां औषधियां फ़ल वनस्पतियां प्रकृति की गोद में समाई हुई है जिसकी जानकारी या उपयोग के बिना वे विलुप्तता की ओर अग्रसर है जिस पर तात्कालिक ध्यान दिया जाना अत्यंत आवश्यक है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन करउसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि पहाड़ी अंजीर, बेडू पाको बारमासा, भारत को प्रकृत का वरदान प्राप्त औषधि वनस्पतियों आयुर्वेद संजीवनी की गाथा,औषधि वनस्पतियों आयुर्वेद का एक प्राचीन चिकित्सा विज्ञान है। रामायण में भी संजीवनी बूटी के वर्णन को रेखांकित करना जरूरी है।
About author
-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
Comments
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com