कोई संस्कृति गलत नहीं होती देखने का नज़रिया गलत होता है
August 05, 2022 ・0 comments ・Topic: Aalekh Bhawna_thaker lekh
"कोई संस्कृति गलत नहीं होती देखने का नज़रिया गलत होता है"
हम कई बार पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता के बारे में लोगों को कहते हुए सुनते की अमरीका के लोग स्वच्छंद है, लड़कियाँ कम कपड़े पहनती है, दारु पीती है, सिगरेट पीती है, वहाँ पारिवारिक रिश्ते अच्छे नहीं होते, लिव इन रिलेशनशिप, तलाक और अबाॅर्शन बगैरह बहुत सारे मुद्दों पर गलतियाँ निकालते पश्चिमी कल्चर को कोसते है।
इस पर कोई टिप्पणी करने से पहले हमारे देश में क्या हो रहा है उसके बारे में गौर करें।
यही सब हमारे देश में भी तो हो रहा है क्या दिखता नहीं किसीको? हमारे देश में भी आजकल कुछ लोगों ने संस्कार, परंपरा, संस्कृति, सभ्यता बेच खाई है उसका क्या? अमरीका को अच्छा कहलवाए ऐसी घटनाएं घट रही है। पहले अपने गिरहबान में झांक कर देखिए फिर दूसरों की संस्कृति पर ऊँगली उठाईये।
अल्प वस्त्र पहने हो या पूरा तन ढ़की स्त्री हो, बात कपड़ों की नहीं देखने वाले के नज़रिये की और सोच की है। अमरीका में कम कपड़े कोई मायने नहीं रखता। वहाँ पर सिर्फ़ आंतर वस्त्रों में भी लड़की रोड़ पर निकलेगी तो भी कोई मर्द खा जानें वाली नज़रों से नहीं घूरता। पर हमारे यहाँ साड़ी या दुपट्टे को चीर कर भी महिलाओं को ऐसी नज़रों से देखते है या कमेन्ट करते है की बिना छुए ही बलात्कार कर देते है। पाश्चात्य संस्कृति खामखाँ बदनाम है। हमारे यहाँ बस में या ट्रेन में चढ़ते,उतरते या भीड़ में दरिंदे औरतों के अंगों को छू लेते है, दबा लेते है। उनकी गंदी मानसिकता महिलाओं को कितना आहत करती है कोई उस एहसास को नहीं जानता, शर्म और गुस्से के मारे सहम जाती है।
अरे वो सब छोड़ो एक माँ कहीं सार्वजनिक जगह पर अपने बच्चे को दूध पिलाने रही होती है और ज़रा सा पल्लू हट जाता है तो उस वात्सल्य सभर नज़ारे को भी गंदी नज़रों से देखने लगेंगे।
कुछ मर्दों की नज़रों में औरतें इंसान नहीं सिर्फ़ भोगने की वस्तु है।
मर्द अगर अपनी नज़र काबू में रखें तो कपड़े मायने नहीं रखते। चार साल की बच्ची कहाँ अंग प्रदर्शन करती है? इतनी छोटी बच्चियों के प्रति कैसे किसीके मन में हवस पैदा हो सकती है? कर देते है न बलात्कार? यहां तो अपनी ही बेटी के साथ बाप रैप कर देता है। घर में ही बच्चियाँ सुरक्षित नहीं चाचा, मामा, फूफा, अंकल, पड़ोसी हर कोई अकेली लड़की का फ़ायदा उठा लेते है छोटी बच्ची को प्यार करने के बहाने अपनी आंतरिक वासना संतुष्ट करते बच्ची के गुप्तांगों को छू लेते है। हर दूसरी लड़की और महिला बेडटच का शिकार होती है।
यहाँ भी बड़े शहरों में खुद को आधुनिक समझने वाली लड़कियां दारु, सिगरेट पीती है। कुँवारी माँ बनकर गर्भपात करवाती है। तलाक यहाँ भी होते है और माँ-बाप को बच्चें वृध्धाश्रम भेज देते है। फ़िल्मों और वेब सीरिज़ों में लड़कियाँ कपड़े उतार रही है, गंदी गालियाँ बक रही है। ऐसे में विदेश के लोग भी ये सब देखकर हमारी संस्कृति की आरती नहीं उतार रहे होंगे। वो भी ये कहते होंगे कि भारत के लोग जो अपनी भारतीय संस्कृति के गुणगान गाते है वो असल में ये है।
विदेश की संस्कृति को देखने का हमारा नज़रिया सदियों से एक सा रहा है कि पाश्चात्य यानी गलत। अपने देश की भूगोल भी नापिए यहाँ कितनी गंदगी फैली है। एक अकेली लड़की रात के बारह बजे कहीं जाने से डरती है। भेड़िये गली-गली मौके की तलाश में भटक रहे है। चार महीने की बच्ची तक को नहीं छोड़ते और हम दूसरे देश की सभ्यता पर सवाल उठाते है। आज विदेशी लोग हरे राम हरे कृष्ण मिशन से जुड़ कर अध्यात्म को अपना रहे है। वहाँ की कुछ महिलाएँ साड़ी और सलवार कमीज़ पहन रही है। बिगड़े हुए सुधर रहे है और हम संस्कृति शब्द को ही निगल गए है। जो जिनका कल्चर हो उस हिसाब से जीते है। शीशे के घर में रहने वालों को दूसरों के घर पर पत्थर नहीं मारना चाहिए। किसीकी सभ्यता या संस्कृति गलत या बुरी नहीं हमारा नज़रिया गलत है, पहले इसे ठीक करें उसके बाद दूसरों पर ऊँगली उठाएँ तो बेहतर होगा।
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