मनमीत रे करनी हैं तुझ संग प्रीत रे | manmeet re karni hai tujh sang Preet re
July 15, 2022 ・0 comments ・Topic: Dr. Alpa. H. Amin poem
मनमीत रे करनी हैं तुझ संग प्रीत रे
मनमीत रे करनी हैं तुझ संग प्रीत रे
जाने है हम तू चाहे हमें बेहद रे
बिन तेरे हमें भी जीना न आये रे
चाहत की बगियाँ चहके रे
उसमें तेरी खुश्बू महके रे
मुझे भाये मीत वो संगत रे
मनमीत रे करनी हैं तुझ संग प्रीत रे
हमदम, हमसफ़र, हमकदम तु रे
तेरे साथ ही कटे सफ़र रे
निगाहें भी सिर्फ देखे तुझे रे
कोई और नज़ारा न उसको प्रेरे रे
मनमीत रे करनी है तुझ संग प्रीत रे
बसा कर नैनो की गहराई में तुझे रे
पार करना हैं जीवन सागर रे
जन्म जन्म तक रहे मिलन रे
न हो कोई दुसरा संसय रे
मुझे पसंद वो संगम रे
मनमीत रे करनी है तुझ संग प्रीत रे
मुस्कान चेहरे पे बिखरे रे
जब हो तुम मेरे करीब रे
हर भाव वो करता बयां रे
उसी कारण वो निखर जाता रे
प्रगट करे हर उमंग रे
मनमीत रे करनी है तुझ संग प्रीत रे
धड़कने दिल की धड़के रे
हर सांस पे तेरा राज रे
आ जाता हैं लबों पे तेरा नाम रे
तुझ बिन कहाँ जीवन रे
तु ही मन मीत रे फैला तनमन में संगीत रे
मनमीत रे करनी है तुझ संग प्रीत रे.......
करनी है तुझ संग प्रीत रे......
Dr. Alpa H Amin
Ahmedabad
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