प्रसन्न मन!

प्रसन्न मन!

डॉ. माध्वी बोरसे!
डॉ. माध्वी बोरसे!

जब मन होता है प्रसन्न,
रोकने को चाहता है वह क्षण,
चलता वक्त थम जाए,
कई और हम स्वयं को पाए!


मुस्कुराहट हमारे चेहरे पर बनी रहे,
कानों में प्यारी सी ध्वनि कुछ कहे,
उस सुगंध का एहसास निरंतर रहे,
ह्रदय में खुशियों की हमेशा लहर बहे!


अपार आनंद में हमारा झूमना,
हसीन वादियों में घूमना,
उस हर्षोल्लास के साथ,
करें हम सभी से बात!


खोकर वह प्यारी सी मासूमियत,
कैसे दे खुश रहने की नसीहत,
भूल जाए कुछ समय के लिए फिक्र,
बचपन का करें फिर से जिक्र!


मन को फिर से प्रसन्न होने दें,
उसे बचपन की यादों में खोने दें,
जब वह चाहे उसे हंसने, रोने दे,
कुछ सपने उसे स्वयं से संजोने दे!!




डॉ. माध्वी बोरसे!
( स्वरचित व मौलिक रचना)
राजस्थान (रावतभाटा)

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