नफरत की आग
जितेन्द्र 'कबीर' |
आग!
आग से बुझती नहीं कभी,
बुझती है रेत
या फिर पानी से,
नफरत की हांडी
चढ़ा कर रखी है फिर क्यों,
खेल रहे हो क्यों
निर्दोष लोगों की जिंदगानी से?
आग!
अपना-पराया नहीं देखती कभी,
मौत की राख
बना देती है
जीवन की हर निशानी से,
भस्मासुर बन जाने को
इतने उतारू हो क्यों,
मिटा देना चाहते हो क्यों
मानव को
धरती की इस कहानी से?
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति- अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314
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