समय का तकाज़ा
नई पीढ़ी के विचारों के साथ सामंजस्य बैठाना समय की मांग
बदलते आधुनिक परिपेक्ष में नई सकारात्मक वैचारिकता का धारण करना समय की मांग - जो समय को छोड़ देते हैं समय उनको छोड़ देता है!!! - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारतीय संस्कृति, सभ्यता और हमारे पूर्वजों, बड़े बुजुर्गों की वैचारिकता, सोच, कहावतें, प्रेरणा, मार्गदर्शन, हमारे लिए अनमोल धरोहर ही नहीं एक अणखुट ख़जाना भी है!!! अगर हम अपनी संस्कृति, सभ्यता और पूर्वजों, बड़े बुजुर्गों की वैचारिक को ग्रहण कर उनकी बताई राहों, उनके द्वारा कही कहावतों पर गहराई से सोचें तो हमें एक-एक शब्द या लाइन में बहुत बड़ी सीख, प्रेरणा, मार्गदर्शन मिल सकता है जो उम्र का तकाज़ा, समय का तकाज़ा, समय बड़ा बलवान रे भैया समय बड़ा बलवान, मुख में राम बगल में छुरी, आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है, इत्यादि ऐसे अनेक सुने अनसुने शब्द कहावतें हैं जिनकी गहराई में जाकर उनका सकारात्मक मतलब निकाल कर हम बुराई से बच सकते हैं और मूल्यवान शब्दों को अपनाकर अपना जीवन संवार सकते हैं।
साथियों इसी कड़ी में बात अगर हम समय का तकाज़ा की करें तो बड़े बुजुर्गों का कहना है कि हमें अपनें जीवन को समय के अनुसार बदलने से ही सर्वसुख संपन्नता के ज्ञान का बोध होता क्योंकि समय एक सा नहीं रहता समय का चक्र हमेशा घूमता, बदलता रहता है कल जो हमारे पास परिस्थितियां थी अब बदल चुकी होतीहै और हमें उन बदली हुई परिस्थितियों के अनुसार अपने को ढालना समय का सही मूल्यांकन हैं, क्योंकि जब दो पीढ़ियों की उम्र का गैप परिवार में आता है तो वैचारिक मतभेद आना स्वाभाविक ही है इसलिए हम बड़ों को चाहिए कि पारिवारिक बिखराव को रोकने, नई पीढ़ी के साथ सकारात्मक विचारों के साथ सामंजस्य बैठाना समय की मांग है क्योंकि बदलते आधुनिक परिपेक्ष में नए सकारात्मक वैचारिकता धारण करना समय की मांग है क्योंकि जो समय को छोड़ देता देता है समय उनको छोड़ देता है।
साथियों बात अगर हम नई पीढ़ी के विचारों की करें तो ऐसा नहीं है कि हमें उनकी हर बातों में सामंजस्य बैठाना होगा, हमें उनकी सकारात्मक बात कैच कर उनके नकारात्मक बातों को उनके विचारों से हटाने का काम उनके साथ वैचारिक सामंजस्य बैठाकर ही करना होगा न कि पहले वाला तनावग्रस्त,आदेशात्मक व्यवहार!!! हमें अपने व्यवहार को सकारात्मक, प्रेरणादायक और मार्गदर्शन रूपी स्वभाव में बदलना होगा तो नई पीढ़ी से भी हमें सकारात्मक और अपनेपन का स्वभाव मिलेगा तब हम एक और एक ग्यारह का फ़ल प्राप्त कर आर्थिक, सामाजिक, नैतिक स्तर पर बलवान बनेंगे।
साथियों बात अगर हम पुरानी पीढ़ी की वैचारिक मतभेद की करें तो, संभवतःजो लोग पुरानी पीढ़ी से संबंध रखते हैं वे युवा पीढ़ी को हमेशा शायद संदेह की नज़र के साथ देखते हैं। वे युवा पीढ़ी के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे हैं। उन्हें लगता है कि उनका गुज़रा हुआ समय सबसे अच्छा समय था क्योंकि उस समय वे युवा थे और अपने बुजुर्गों का आदर करते थे तथा उनके प्रति अधिक आज्ञाकारी थे। वे ऐसा मानते थे कि अपने बुजुर्गों का अपमान करने से परिवार को अपूरणीय क्षति हो सकती है। इसके विपरीत आज के समय में युवाओं का मानना है कि उन्हें वृद्धों पर अत्यधिक निर्भर नहीं रहना चाहिए और उन्हें सब कुछ खुद करने के लिए आत्मनिर्भर होना चाहिए। युवा परिवार में अपने बुजुर्गों द्वारा दी सलाह का पालन करना शायद नापसंद करते हैं। जीवन की गति इतनी तेज हो गई है कि माता-पिता अपने बच्चों के लिए थोड़ा सा समय ही निकाल पाते हैं। युवा और बुज़ुर्ग पीढ़ी के बीच समझ और अंतरंगता को विकसित करने के प्रयास कम किए जा रहे हैं।
साथियों बात अगर हम युवाओं की दुविधा की करें तो, युवाओं को यह पता है कि वास्तव में हमारे देश की स्थिति क्या है। समर्पण, कर्तव्य, नैतिकता आदि पर चर्चाओं ने युवाओं को एक बड़ी दुविधा में डाल दिया है। आज के युवाओं को जो कुछ भी उनके बुजुर्ग उन्हें सिखाएंगे उसे वे आंख बंद कर स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। जब युवाओं को यह पता चलता है कि भ्रष्टाचार और राजनीति ने हर क्षेत्र में प्रवेश कर लिया है। जिसके वजह से वे हमेशा सामाजिक और आर्थिक भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए तैयार रहते हैं। इसलिए वे गंभीरता से समाज में बदलाव देखना चाहते हैं।
साथियों बात अगर हम पाश्चात्य संस्कृति देशों की करें तो विदेशी देशों में पीढ़ी का अंतर इतना बड़ा है कि युवा और बुज़ुर्ग लोग एक छत के नीचे रहना भी पसंद नहीं करते हैं। जब युवा पैसा कमाना शुरू करते हैं तो वे अपनी ज़िंदगी को स्वतंत्र रूप से शुरू करना चाहते हैं। इसी तरह बुज़ुर्ग लोग भी अपने पुराने घरों या पेंशनभोगी घरों में युवाओं से अलग रहते हैं। इसलिए यही पीढ़ी का अंतर संयुक्त परिवारों और घरों को टूटने की ओर ले जाता है। हमें कोशिश करनी चाहिए कि स्थिति इस हद तक नहीं पहुंचे जहाँ भारतीय परिवार एक ही छत के नीचे अलग-अलग रहना शुरू कर दे। चलिए अपनी युवा पीढ़ी को अच्छी शिक्षा प्रदान करें ताकि वे अपनों से दूर न जाएं और उनसे जुड़े रहें।
साथियों बात अगर हम माननीय पीएम द्वारा दिनांक 1 अप्रैल 2022 को परीक्षा पर चर्चा में बदलती प्रणालियों के साथ विकसित होने की बात की करे तो, उन्होंने कहा कि 20 वीं सदी की शिक्षा प्रणाली और अवधारणा 21वीं सदी में हमारे विकास पथ को निर्धारित नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि अगर हम बदलती प्रणालियों के साथ विकसित नहीं हुए तो हम पीछे छूट जाएंगे और पीछे की ओर चले जाएंगे। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति किसी के जुनून का अनुसरण करने का अवसर देती है। उन्होंने ज्ञान के साथ कौशल के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के हिस्से के रूप में कौशल को शामिल करने का यही कारण है। उन्होंने विषयों के चुनाव में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) द्वारा प्रदान किए गए लचीलेपन के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि एनईपी के उचित क्रियान्वयन से नए अवसर तैयार होंगे। उन्होंने पूरे देश के स्कूलों से छात्रों द्वारा आविष्कृत नई तकनीकों को लागू करने के नए तरीके खोजने का आग्रह किया।जाने हम इसे इस परिपेक्ष में गए कि समय के साथ परिस्थितियों के अनुसार सामंजस्य ज़रूरी है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि समय का तकाज़ा है नई पीढ़ी के विचारों के साथ सामंजस्य बैठाना समय की मांग है!! बदलते आधुनिक परिपेक्ष में नई सकारात्मक वैचारिकता धारण करना समय की मांग है, जो समय को छोड़ देते हैं समय उनको छोड़ देता है!!!
-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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