मोहब्बत का मरहम़ लगा
मोहब्बत का मरहम़ लगा
फ़रेब दिया तूने चाहे , रूह में मेरी तू ही समाता है
ये दिल तो कायल था, आज भी तुझे ही चाहता है।।
जानती हूं तेरी जिंदगी में तुझे , मेरी जरुरत ही नहीं
ये दिल आज भी तुझे पाने कि ही उम्मीद लगाता है।।
जख़्म इतने दिये हैं तुमनें , सुनो ओ मेरे हमनवां
भूल हर ज़ख्म को , दिल तुझे गले लगाना चाहता है।।
सुन कभी तो तुमको भी मेरा ख्याल आता ही होगा
मेरे एहसास तेरे करीब होने का ही अहसास दिलाता है।।
अपनी रुह में इस कदर बसाए बैठे थे हम तुमको सनम
क्या मेरी जिंदगी की सांसों कि डोर खुदमें तू ना पाता है।।
दर्द हर जख़्म में इतना कि ये दर्द ए तड़प नहीं घटती
क्यों ना अपनी मोहब्बत का मरहम़ तू दर्द पर लगाता है।।
टूट न पाएं देखों वीणा के सांसों के बंधन के ये तार
क्यों ना फिर साज़ छेड़ वीणा को तू सुर ना दे जाता है।।
वीना आडवाणी तन्वी
*दर्द ए शायरा*
नागपुर, महाराष्ट्र