जीवन में द्वंद का समापन!
कभी पाऊं खुद को अनजान,तो कभी महान,
कभी अज्ञानी, तो कभी ज्ञानी,
मुझ में हे अच्छाई या बहुत सी बुराई,
कभी आशा तो कभी निराशा,
कभी अस्वस्थ तो कभी मस्त,
कभी उदय तो कभी अस्त,
कहीं बड़ा तो कहीं छोटा,
कभी सच्चा तो कभी खोटा,
कभी अभिमान तो कभी नम्रता,
कभी क्रोधित तो कभी भरपूर क्षमता,
कभी मन में विष तो कभी अमृत,
कुछ आवश्यक तो कुछ अनावश्यक,
कुछ उचित तो कुछ अनुचित,
जिंदगी लगे अभिशाप तो कभी कभी वरदान,
कभी हर पल भारी तो कभी लगे मूल्यवान,
कहीं आजादी तो कहीं गुलामी,
कई हम राजा तो कहीं कोई और स्वामी,
कौन यह अपना कौन है पराया,
कभी अपनों ने साथ छोड़ा और परायो ने अपनाया,
कुछ जटिल तो कुछ सरल,
कहीं खंडहर तो कहीं महल,
कभी क्रांति तो कभी शांति,
कभी लाभ तो कभी हानि,
कहीं अग्नि तो कहीं पानी,
कभी हम सुख में तो कभी हम दुख में,
कभी सर उठा के, तो कभी चले झूक के,
कभी अमीरी तो कभी गरीबी,
द्वंद हमारे मन में आए कभी भी,
तो यह जान लेना है जरूरी,
एक दूसरे से इनका है वजूद,
हम सबके जीवन में यह है मौजूद,
एक दूसरे के बिना इनकी परिभाषा अधूरी,
वक्त वक्त पर इनका का एहसास भी है जरूरी,
जिंदगी इन एहसासों के बिना है नीरस,
तो जरूरी है स्वयं में हो धीरज,
दुख के बिना सुख कि आस नहीं,
गर्मी के बिना शीतलता का एहसास नहीं,
चलो अपनाए जीवन की हर परिस्थिति,
और भूले ना हम यहां पर है कुछ वक्त के अतिथि!!
डॉ. माध्वी बोरसे!
(स्वरचित व मौलिक रचना)
राजस्थान (रावतभाटा)
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