मेरा प्यार आया है
भटका हूं तेरी तलाश में बहुतमिले हो अब तो मुझमें ठहराव आया है,
करने दे थोड़ा आराम
अपनी जुल्फों की छांव में
कि बड़ी मुश्किल से हसीं यह
पड़ाव आया है।
जितनी देरी से मिला है यह तोहफा
उतना ही खूबसूरत और नायाब आया है,
छूकर जरा यकीं दिलाने दे मुझे खुद को
कि है यह हकीकत
या कि फिर मुझे हसीं कोई ख्वाब आया है।
बंजर प्यासी थी मेरे मन की धरा
बुझाने उसकी प्यास
प्यार का यह सैलाब आया है,
ईश्वर आ नहीं पाया
लेकिन उसका नुमांइदा बनकर
मेरी जिंदगी में यह आफताब आया है।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति-अध्यापक
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