"लिहाफ़ ही मेरा छोटा है"-भावना ठाकर 'भावु'
February 13, 2022 ・0 comments ・Topic: Bhawna_thaker poem
"लिहाफ़ ही मेरा छोटा है"
दिल पर प्रताड़ना का पत्थर पड़ा है और मैं साँसें ढूँढ रही हूँ, अश्क नहीं उभरते नैंन कंचे हो चले है..उम्मीदों का बोझ लादे मन थक सा गया सपने समय मांगते है, सपने देखना ही छोड़ दिया,
संभावना न हो जिस पथ पर रोशनी की उस पर चलना ही क्यूँ..
ऋजु है मेरी सहनशीलता मैं चट्टान तो नहीं, हारी वारि हूँ जीत की आदी नहीं,
सहिष्णुता को सज़ा लाज़मी है..
बारूद के ढ़ेर पर बिठा दी गई हूँ एक तिली से कब चिंगारी उठेगी कब मैं ख़ाक़ हो जाऊँगी नहीं पता..
क्यूँकि इस रिश्ते की किंमत आसमान छू रही है, मेरे गरीब बाप में दहेज देने की हैसियत जो नहीं..
जीना रवायत है तन की
रैंगती हुई उम्र गुज़र रही है दो पाटन के बीच कौन साबुत बचा है,
निचोड़े हुए गन्ने के कूचों सी तमन्नाएं सूखी पड़ी है..
ज़िंदगी की हकीकत से मीलों दूर है मेरी ख़्वाहिशों की गाड़ी
अना हार गई, हौसले झुक गए वक्त की चुनौतियाँ ठहाके लगा रही है..
"भ्रम टूट गया की ज़िंदगी हसीन है"
हौसलों का वितान फटे हुए टाट से कैसे बनवाऊँ तुरपाई के धागे ही निर्माल्य ठहरे..
परचम कैसे लहराऊँ आज़ादी का
पैर की जूती हूँ मेरी शिखा उनकी मुठ्ठी में कैद है,
पैर कैसे फैलाए कोई लिहाफ़ ही जहाँ छोटा है..
बहरहाल बंदी हूँ इक्कीसवीं सदी की दहलीज़ दूर बड़ी दूर है मेरी आस का पंछी धीमे उड़ रहा..
आप मुझे कायर कह सकते हो माँ हूँ जो कुछ सहा ममता में मोहाँध होते सहा,
मुझे अबला न कहो..
उस दमनकारी सोच वाले दरिंदे को कोई गाली तो दो,
जो अर्धांगनी को इंसान नहीं चुटकी सिंदूर के बदले खरीदा हुआ गुलाम समझता है।
भावना ठाकर 'भावु' (बेंगलूरु, कर्नाटक)
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