खदेड़ा होबे!, खेला होबे!!, फर्क साफ़ है!!!

February 04, 2022 ・0 comments

खदेड़ा होबे!, खेला होबे!!, फर्क साफ़ है!!!

खदेड़ा होबे!, खेला होबे!!, फर्क साफ़ है!!!
नए प्रौद्योगिकी भारत में मतदाता हर मुहावरे का अर्थ समझने में सक्षम!!!

पांच राज्यों के चुनाव में हर मतदाता को स्वतःसंज्ञान भागीदारी लेकर मतदान 90 प्रतिशत से उपर लाकर लोकतंत्र मज़बूत करना ज़रूरी - एड किशन भावनानी

गोंदिया - विश्व के सबसे बड़े मज़बूत, प्रतिष्ठित लोकतंत्र भारत में चुनाव उत्सव किसी बड़े पर्व से कम नहीं होता मतदाता से लेकर हर राजनीतिक दल, निर्दलीय, आम जनता से लेकर छोटे-छोटे बच्चों तक इस पर्व के रंग में रंग जाते हैं!! ऐसी है हमारी मां भारती की धरती पर लोकतंत्र की गरिमा!!!
साथियों बात अगर हम भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व चुनाव में मुहावरों की करें तो यह कोई नई बात नहीं है! दशकों से हम देखते आ रहे हैं कि हर चुनाव में अनेक मुहावरे बोले जाते हैं और वह बड़ों से लेकर बच्चों तक की जुबान पर आ जाते हैं। वह मुहावरे चुनावी चिन्ह, चुनावी पार्टी, उम्मीदवार, व्यक्तिविशेष इत्यादि अनेक संबंधित तत्वों पर हो सकते हैं। हालांकि कुछ मुहावरे हमने राज्यों में भाषाई स्तरपर भी देखे हैं परंतु वह कहीं ना कहीं उस चुनाव के किसी तत्व से संबंधित होते थे उसमें चुनाव चिन्ह या पार्टी का बोध होता था जिसके आधार पर हर मानव के समझ में बात आ जाती थी।
साथियों बात अगर हम चुनावी गीतों, संगीत की करें तो उसके बाद दौर चुनावी गीतों और संगीत का आया और अनेक धुनों पर पार्टी चुनाव चिन्ह, कामकाज, योजनाओं, इत्यादि की लंबी फेहरिस्त गीतों में गिना कर जनता को वोट देने की अपील शामिल होती थी और वह गीत भी बच्चों से लेकर बड़ों तक को की जुबान पर रहता था और चुनाव के साथ-साथ गीतों का भी आनंद जनता को मिलता था।


साथियों बात अगर हम पिछले साल बंगाल चुनाव की करें तो वहां से इन मुहावरों, गीतों, संगीत तो का ट्रेंड थोड़ा सा बदल गया और बात,,खेला होबे,, इन दो शब्दों पर पहुंची जो अति चर्चित हुआ मेरा मानना है करीब-करीब हर व्यक्ति के पवित्र मुख में खेला होबे मुहावरा था। हालांकि बहुत कम लोगों को ही इसका मतलब समझ में आया होगा और इसी तर्ज पर अनेक बातों को जोड़कर खेला होबे की चर्चा हुई। पर जनता के दिमाग में खेला हो बे ही बसा था!!!
साथियों बात अगर हम अभी 10 फरवरी से 10 मार्च 2022 तक के चुनाव में, खदेड़ा होबे!! और फर्क साफ है!! की करें तो प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर दोनों की बहुत चर्चा है। हम रोज टीवी चैनलों पर अनेक मुद्दों की परिस्थितियों को बता कर दिखाया जाता है कि फर्क साफ है!!! वही मीडिया में खदेड़ा होबे की भी अपार चर्चा है!!!

साथियों बात अगर हम खदेड़ा होबे की करें तो इसका मतलब भी सभी को नहीं समझा है!! परंतु स्थितियों परिस्थितियों को समझते हुए भी मुहावरे का मतलब समझने वाले समझ गए, जो ना समझे वह राजनीति में अनाड़ी हैं!!! इस मुहावरे के ज़वाब से भी हमने कई संबंधित तर्क सुनें परंतु लोगों के दिमाग में यही मुहावरा बैठा हुआ है कि खदेड़ा होबे!!! हालांकि इसका मतलब सभी को नहीं मालूम!!!
साथियों बात अगर हम फर्क साफ है!!! की करें तो लगभग हर टीवी चैनल पर ब्रेक के समय हम देखते हैं कि अनेक मुद्दों पर आपस में दो मुद्दों पर उनकी तुलना करते हुए फर्क साफ है!!! दिखाया जाता है जो अभी बच्चे-बच्चे की जुबान पर है कि फर्क साफ है!!! हालांकि इसका मतलब भी अभी अनेकों मानवों को नहीं पता बस मुख में अभी समाया हुआ है कि फर्क साफ है!!!
साथियों बात अगर हम अभी हाल ही में उठाए गए इन तीनों मुहावरों, शब्दों को अगर अपने सकारात्मक सोच के साथ इसका अर्थ निकालें तो खदेड़ा होबे को हम अपने दिलो-दिमाग, समाज, मानवीय प्रवृत्ति, जाति,आस -पड़ोस, हर क्षेत्र में बुराइयों, अपराध, अपराधियों, गैरकानूनी कामों, आपराधिक गतिविधियों, नशीली वस्तुओं, भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचारियों, अधर्मों के खिलाफ इस खदेड़ा होबे को पूर्णतः फिट कर इसका क्रियान्वयन इन अनैतिक कार्यों के खिलाफ़ जोरदार ढंग से करने का संकल्प लेने की तात्कालिक ज़रूरत है
उपरोक्त कर्मकांडों को करने वालों के खिलाफ हम खेला होबे शब्द या मुहावरे उपयोग कर सकते हैं अगर हमने ऐसा कर दिखाया तो समझो भारत को फिर सोने की चिड़िया बनाने से हमें कोई नहीं रोक सकता।
साथियों बात अगर हम फर्क साफ़ है!! की करें और हम अपने अंदाज में देखें तो उपरोक्त सभी बुराइयों और भाईचारा, प्रेम, वात्सल्य, राष्ट्रवाद, संविधान कानून नियम नियमों का पालन, सर्वधर्म सम्मान, हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सभी आपस में भाई-भाई इत्यादि विचारधारा से करें तो फर्क साफ है!!! हर राष्ट्रवादी व्यक्ति नागरिक को बात समझ में आएगी कि क्या फर्क है और यह बात समझ में आ गई तो फिर फर्क साफ़ है!! भारत फिर सोने की चिड़िया होगा और हर नागरिक उसका मालिक!!
साथियों अगर हम इसे समझेंगे तो हमारी मां भारती की गोद में हम सदा हरे भरे रहेंगे!! हमारी वर्तमान जिंदगी, आने वाली पीढ़ियों की जिंदगी संवर जाएगी!! हमें इस पृथ्वी लोक पर ही जन्नत, स्वर्ग के दर्शन हो जाएंगे!! एक नए युग की शुरुआत होगी, जिससे हमारे पूर्वज सतयुग का नाम दिया करते थे! अगर हम तीनों मुहावरों को इस अंदाज में लेंगे तो हमारे पूर्वजों के सपनें साकार होंगे ये परम निश्चित है, हम सौभाग्यशाली होंगे!!!
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि,, खदेड़ा होबे,, खेला होबे,, फर्क साफ़ है,, नए प्रौद्योगिकी भारत में मतदाता हर मुहावरे का अर्थ समझने में सक्षम है तथा पांच राज्यों के चुनाव में हर मतदाता को स्वतःसंज्ञान भागीदारी लेकर मतदान 90 प्रतिशत तक लाकर लोकतंत्र मज़बूत और उसकी गरिमा कायम रखना ज़रूरी हैं।

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ
 एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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