मन के हारे हार- जितेन्द्र 'कबीर'-
January 25, 2022 ・0 comments ・Topic: Jitendra_Kabir poem
मन के हारे हार
हार भले ही कर ले इंसान को
कुछ समय के लिए निराश
लेकिन वो मुहैया करवाती है उसको
अपने अंतर्मन में झांकने का
दुर्लभ अवसर,
संघर्ष की राह चल पाए वो अगर
अपनी कमियां सुधार कर
तो कामयाबी करती है
उसका वरण।
जीत भले ही कर ले इंसान को
कुछ समय के लिए खुश
लेकिन वो लाती है अपने साथ
जिम्मेदारी भी
उस कामयाबी को बरकरार रखने की,
और यकीन मानों!
कामयाबी बरकरार रखने का संघर्ष भी
चैन से बैठने नहीं देता
कभी इंसान को,
सच तो यह है कि खोने का डर
ज्यादा बेचैनी वाला अहसास है
पाने की उम्मीद के सामने
हर हाल में।
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