माँ का आँचल- सिद्धार्थ गोरखपुरी
January 25, 2022 ・0 comments ・Topic: poem Siddharth_Gorakhpuri
कविता -माँ का आँचल
माँ एक बार फिर से मुझको,आँचल ओढ़ के सो जाने दे
बचपन की यादें ताज़ा हो जाएँ ,बचपन में मुझको खो जाने दे
माँ!तुम्हारी ममता की छाँव तले
मैं अक्सर सोया करता था
जब तुम मुझे जगाती थी
मैं रह- रहकर रोया करता था
बचपन के धागे में फिरसे,ख़्वाबों को
अपने पिरो जाने दे
माँ एक बार फिर से मुझको,आँचल ओढ़ के सो जाने दे
जीवन में जिम्मेदारियां अनेक
रह - रह कर उपजा करतीं हैं
कुछ मुझको रुसवा करतीं हैं
कुछ मुझको तनहा करतीं हैं
आँखें भारी लगतीं है माँ,आँचल को अपने भिगो जाने दे
माँ एक बार फिर से मुझको, आँचल ओढ़ के सो जाने दे
मन हल्का हो जाएगा मेरा
माँ तेरे प्रीत के छाँव तले
तेरे आँचल के छईयाँ में
दुःख दर्द सब भाग चले
मेरे माथे को तेरे आँचल से,बस कुछ देर संजो जाने दे
माँ एक बार फिर से मुझको, आँचल ओढ़ के सो जाने दे
तेरे प्रेम सा कोई प्रेम नहीं
नहीं इस जहान में दूजा है
माँ शब्दों से भले ही नहीं
पर मन से तुमको पूजा है
मुझे बचपन वाला प्रीत दे माँ,फिर मुझको मेरा हो जाने दे
माँ एक बार फिर से मुझको, आँचल ओढ़ के सो जाने दे
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com
If you can't commemt, try using Chrome instead.