कैसे कोई गीत सुनाये-आशीष तिवारी निर्मल
January 07, 2022 ・0 comments ・Topic: Ashish Tiwari- poem
कैसे कोई गीत सुनाये
कितने साथी छूट गए
सब रिश्ते नाते टूट गए
पल-पल मरती आशाएं
जब अपने ही लगें पराये
कैसे कोई गीत सुनाये ?
बचपन बीता अठखेली में
यौवन बीता रंगरेली में
भूले सब वह जो करना था
खोये रहे एक पहेली में
समय चक्र आगे निकला
संग आने की टेर लगाये
कैसे कोई गीत सुनाये ?
नित नई आती बाधा में
सफर हद से ज़्यादा में
अंतर भी न समझे सके
रुक्मणी और राधा में
रोज द्रौपदी लुटती है
कान्हा कितनी चीर बढ़ाए
कैसे कोई गीत सुनाये ?
तजे प्राण राजा दशरथ ने
आंसू नही हैं कौशल्या में।
जातिवाद के हो हल्ला में
झगड़ा है गली मुहल्ला में।
इस युग में राम के जूठे बेर
कहां किस शबरी ने खाये
कैसे कोई गीत सुनाये ?
शून्य हुईं सब अभिलाषाएं
नर्तन करती मृत्यु निशाएं
अपने-अपने में यूँ खोए हैं
कौन सुने किसकी आहें
हो यदि मुफलिस की बेटी
उसकी डोली कौन उठाए
कैसे कोई गीत सुनाये ?
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