ऐ चाँद
लिख रही तेरी दास्तान
शीतलता करते प्रदान
दागदार वह कहलाते हैं
जीवों के हित आते हैं
चाँदनी फिर छिटकाते हैं
निशब्द भरी रातों में चल
अविराम पथिक के भाँति
चलना हमें सिखाते है
मामा कभी बन जाते हैं
बच्चों के मन बहलाते हैं
कभी प्रेमिका का रूप धर
आशिकी के धड़कन बन
उपमा कितने वह पाते हैं
कभी सोलह श्रृंगार कर
ह्रदय चितवन सजाते हैं
कभी योगी के तप का
फल बनकर चाँद आते हैं
खूबियाँ जानता है जहान
लिख रही तेरी दास्तान।
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