उठाओ सुदर्शन मत बनो कृष्ण
क्यों देखनी हैं सो गलतियों की राह अब?
सब से पहले जब महिलाओं को शहीनबाग में आगे करके सी ए ए के कानून के खिलाफ महीनों मोर्चा लगा कर बिठाया और उसमे छोटे छोटे बच्चों को भी ठंडी ,गर्मी और बारिश में परेशान होने के बाद भी मोर्चा लगाए रखा जिसका अंजाम दंगो में ही हुआ क्यों कोई कानूनी राह से उनको वहां से उठाया नहीं गया?वहां जो बैठे थे वे भी गैरकानूनी तरीके से जनजीवन की गतिविधियों में बाधा डाल कर जोहुक्मी चलाई गई थी तो क्यों दंडित नहीं किया गया,ये प्रश्न का जवाब ही शायद आज कोई नहीं दे पाएगा। दंगे में भी जो कसूरवार थे उनके साथ क्या हुआ ये पता हैं क्या किसी को?
वैसे ही किसान आंदोलन में पूरे एक साल तक दिल्ली की सड़को को घेर कर दिल्ली में आवाजाही रोक कर जनता को और व्यापार धंधे को अवरोधित करने वालों को क्यों नहीं रोका गया जो विदेशी ताकतों के हाथ बीके हुए थे,सोशल मीडिया पर भी उन्ही लोगो के संदेशों की भरमार थी तो क्यों न लिए गए कोई सख्त कदम जिससे ये आंदोलन खत्म हो जाए ।उनका ध्येय साफ था कि वे कानूनों में सुधार भी नहीं चाहते थे उनको रद करवाने की जिद्द कर प्रशासन को हराना चाहते थे,ये लोकतंत्र की हार ही थी।जब महीनों तक चले आंदोलन के बाद उन्हें वापस लेना साफ बताता हैं कि खाया पिया कुछ नहीं ग्लास तोड़ा बारह आना।कुपात्र को दी हुई माफी को वे अपनी जीत समझ कर फूल के कूपा हो गए थे।जो कुछ 26 जनवरी को हुआ वह राष्ट्र का अपमान था,अपने तिरंगे का भी अपमान हैं लेकिन क्यों बक्श दिया उन सभी को? वहां तो कोई न कोई सख्त कानूनी कार्यवाही हो ही सकती थी लेकिन नहीं हुई ये सत्य हैं।
साथ साथ बंगाल के चुनावों के दरम्यान जो हुआ वह अमानुषी राजनीति थी जो राष्ट्रदोह से कम नहीं थी! ममता जी की कड़वी और अशिष्ट वाणी को लगाम देने का कोई तरीका नहीं था प्रशासन के पास? ईतनी भद्दी भाषा एक अशिष्ट नेता की हैं तो उनके राज्य में प्रगति और समृद्धि का होना कैसे मुमकिन होगा?एक स्त्री होके भी कितनी स्तरहीन भाषा का प्रयोग कर अपनी ही प्रतिभा का हनन करने वाली मुख्य मंत्री को आइना दिखाना अति आवश्यक हैं।वहां कुछ नहीं हुआ उसका भी कोई खास कारण हैं क्या?कितने कार्यकारों की हत्या की गई,कितनी औरतों की इज्जत लूटी गई कोई हिसाब ही नहीं हैं।
और अब जो पंजाब में हुआ वह तो अराजकता की इंतहा हैं।देश के प्रधान मंत्री को स:आशय एक ऐसी जगह पर रास्ता ब्लॉक कर उन्हे जाने का रास्ता नहीं दे सड़कों पर वाहनों को रोक लेना क्या वाजिब था? उनको एक रैली में जाने से रोकना ने के लिए रचाया गया तरकट ही था।वहां रोके गए जहां से पाकिस्तान सरहद कुछ १० किलोमीटर दूर थी और कैसे विश्वास कर सकते हैं इस देश पर जिसकी आतंकवाद को बढ़ावा देने की प्रस्थापित पहचान हैं, और यह जगजाहिर भी हैं।कोई ड्रोन हमला या कुछ भी हो सकता था क्योंकि की जहां सैबोटेज हुई वह जगह चारों और से खुली थी।उपर आसमान,नीचे फ्लाई ओवर के नीचे की जमीन और दायां–बयां सब।कोई भी जगह से कुछ भी घातक हमला हो सकता था अपने प्रधानमंत्री की हत्या भी हो सकती थी।जो लोग वहां रास्ता रोक कर,ट्रैक्टर और बस और ट्रक लगाके बैठे थे उन्हे पहले तो बैठने क्यों दिया गया? अगर बैठ गए तो वहां से उठाया क्यों नहीं गया? अगर नहीं उठे तो एक्शन क्यों नहीं लिया गया? इन प्रश्नों का उत्तर सिर्फ पंजाब प्रशासन वालों के अलावा कोई नहीं जानता,दूसरे तो सिर्फ अंदाज ही लगा सकते हैं।शुक्र हैं कि कुछ हानि के बिना वापसी हुई वह सदनसीब ही हैं अपना। लिधियाना का बम ब्लास्ट और दिल्ली में पाए गए विस्फोटकों की कड़ी कहां कहां मिल रही होगी ये भी जांच का ही विषय हैं।
अब जब ये सब चर्चाएं चल रहीं हैं तो सारा दोष फिर प्रधानमंत्री के उपर ही डाला जा रहा हैं कि उनकी रैली में कम संख्या में लोग थे इसलिए बहाने से वे वापस मुड़ गए थे आदि आदि।क्या चोर की दाढ़ी में तिनका ऐसा ही होता हैं? गलत बयानी से नाटक और स्वांग आदि की उपमाएं दी जा रही हैं।
यहां तक कि वे लोग ये कह रहे हैं कि वे डिजर्व करते हैं ।इतनी सस्ती क्यों हो गई हैं जानें,जो बंगाल में गई और देश के अन्य हिस्सों में गई ।
अब एक और नया शगूफा निकला हैं कि सुप्रीम कोर्ट के वकीलों को धमकी भरे फोन कॉल आ रहे हैं विदेशों से,कौन है ये विदेशी बंदा,जो सभी वकीलों को प्रधानमंत्री का केस नहीं लेने की धमकियां दे रहा हैं।कितना जटिल होता जा रहा हैं ये मामला ये यहीं दर्शाता हैं।जब तक देश के भीतर हो रहें उनसे पहले निबटना होगा,अगर अंदरूनी मामलों को निबटा लेंगे तो बाहरी तो अपने आप ही निबट जायेंगे।
अब बहुत हो गया युधिष्ठिर बन के मौन रह कर सहना और दूसरों को भी सहने के लिए मजबूर करना।युधिष्ठिर के साथ चारों भाइयों , द्रौपदी और कुंती ने भी बहुत अन्याय को सहा था। यहां उनकी अच्छाई का साइड इफेक्ट उनकी प्रजा सह रही हैं।एक गाल पर कोई चांटा मारे तो दूसरा गाल धरने के बाद भी कोई कॉलर पकड़े तो क्या करना चाहिए ? सोचिए! अब तो कृष्ण बन कर १०० अपराधों की राह देखने का भी समय चला गया हैं।जो अपराध हो रहे हैं वे तो १००० अपराधों से भी ज्यादा गंभीर हैं।
अब न युधिष्ठिर न ही कृष्ण बनो,बन जाओ गुजरात वाले वही वीर।
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