नई आस- जयश्री बिरमी
January 06, 2022 ・0 comments ・Topic: Jayshree_birmi poem
नई आस
बहुत दिनों के बाद अब जगी हैं एक नई आस
हर्षोल्लास के दिन भी थे ये दिलाती हैं एहसास
खेलते दौड़ते थे बच्चे और बतियातीं थी हम
खो गया था ,हो गया था ये सब एक स्वप्न
जाते थे खुश खुश लाने घर का सामान
और अब दौड़ते भागते घर की राह ढूंढते हैं आसान
जाते थे जब घूमने फिरने
और लेते थे आस्वाद व्यंजनों का
अब घर में ही लेते हैं स्वाद हर व्यंजन का
काश अब नए साल में लौट आए दिन पुराने
और न आए दोबारा वो दिन
अनचाहे
खूब जमेगी महफिलें दोस्तों की
और होगी मुलाकातें हरदम
नई आस अब नए साल में नए वरण के साथ आएं
अब तो गए बीत हैं बरसों तरसते हैं रिश्ते
खुलके जीने को हैं ये मन तरसे
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