गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में...
January 24, 2022 ・0 comments ・Topic: poem Tamanna_Matlani
गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में....
नन्हीं कड़ी में....
आज की बात
जीना चाहता हूँ...
(कविता...)
मैं भी किसी के आँख का तारा
और किसी के भविष्य का सहारा हूँ,सरहद पर मर-मिटने को नहीं
देश की रक्षा करने आया हूँ।
हर पल देश की सरहद पर
उस मौत का सामना मैं करता हूँ,
दुश्मन मेरे देश में घुसने न पाए
इसलिए हर पल सजग मैं रहता हूँ।
खून के अश्रु तब मैं रोता हूं
मेरे अपने ही जब मुझ पर वार करें,
हाथों में हथियार रहें फिर भी प्रहार उन पर नहीं करता हूँ।
जब तक मुझमें प्राण हैं बाकी
माँ सीमाओं पर तेरी रक्षा मैं कर लूंगा,
पर देश के भीतर छिपे गद्दारों से तेरी रक्षा मैं कैसे करूँगा...?
दुश्मनों के मददगार हैं बैठे
देश के भीतर फन फैलाए,
कहते हैं हमको यह कर्तव्य तुम्हारा
सैनिक तो सिर्फ,मरने को आए।
ऐसी सोच रखने वालों से
अब हमको ही तो लड़ना है, जहरीले साँपों के फन
हमको ही मिलकर कुचलना है।
हे माँ,जब तक तेरे दुश्मन
अंतिम श्वासें अपनी न गिन लें,
है तमन्ना तेरी रक्षा की खातिर मरना नहीं,
इसलिए हर पल सजग मैं रहता हूँ।
खून के अश्रु तब मैं रोता हूं
मेरे अपने ही जब मुझ पर वार करें,
हाथों में हथियार रहें फिर भी प्रहार उन पर नहीं करता हूँ।
जब तक मुझमें प्राण हैं बाकी
माँ सीमाओं पर तेरी रक्षा मैं कर लूंगा,
पर देश के भीतर छिपे गद्दारों से तेरी रक्षा मैं कैसे करूँगा...?
दुश्मनों के मददगार हैं बैठे
देश के भीतर फन फैलाए,
कहते हैं हमको यह कर्तव्य तुम्हारा
सैनिक तो सिर्फ,मरने को आए।
ऐसी सोच रखने वालों से
अब हमको ही तो लड़ना है, जहरीले साँपों के फन
हमको ही मिलकर कुचलना है।
हे माँ,जब तक तेरे दुश्मन
अंतिम श्वासें अपनी न गिन लें,
है तमन्ना तेरी रक्षा की खातिर मरना नहीं,
सिर्फ और सिर्फ मैं जीना चाहता हूँ।।
तमन्ना मतलानी
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