बता रहा है धुआँ - सिद्धार्थ गोरखपुरी

शीर्षक - बता रहा है धुआँ

बता रहा है धुआँ - सिद्धार्थ गोरखपुरी
आदमी अंदर और बाहर उड़ा रहा है धुआँ
तिल -तिल फेफड़ों को सड़ा रहा है धुआँ
ऊपर जाना और ले जाना मेरी फ़ितरत है
धूम्रपान करने वालों को बता रहा है धुआँ

अपनी जिंदगी को खतरे में डाल रहे हो
पहले तो यार तुम भी वाकमाल रहे हो
न परिवार की चिंता है न तुम्हे है खुदकी
खुद से कैसा बदला निकाल रहे हो
वो कहीं का न हुआ जिसका मैं हुआ
धूम्रपान करने वालों को बता रहा है धुआँ

अपनी जिंदगी के दिन ऐसे जाया न करो
अपने फेफड़ों को धुएँ से तड़पाया न करो
माना के ये लत बहुत ज्यादा गलत है
कश जरूरी है ये खुद को बताया न करो
आदमी खोद लेता है अपने मौत का कुआँ
धूम्रपान करने वालों को बता रहा है धुआँ

यह सिगरेट नहीं, एक मीठा जहर है
होता इसका आहिस्ता -आहिस्ता असर है
तुम खुद के साथ अपने परिवार की जिंदगी पी रहे हो,
तुम, तुम्हारा परिवार सब के सब बेखबर हैं
तुम खेल रहे हो सबकी जिंदगी पर जुआ
धूम्रपान करने वालों को बता रहा है धुआँ

-सिद्धार्थ गोरखपुरी
गोरखपुर उ. प्र.

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