अक्ल पर पत्थर मढ़े जाएं
दुनिया में लोगों ने पहले
अपनी - अपनी आस्था के अनुसार
मंदिर, मस्जिद, गिरजे, गुरुद्वारे
और भी नाना प्रकार के धर्म-स्थल बनाए,
उनमें अपनी - अपनी आस्था अनुसार
मूर्तियां, किताबें अथवा अन्य चिह्न सजाए,
फिर खुद ही उनकी पूजा, इबादत,
एवं प्रेयर के नियम बनाए,
और अंत में अपनी - अपनी
ईश्वर-उपासना की पद्धति को श्रेष्ठ बताकर
आपस में लड़े जाएं,
सदी दर सदी यह सिलसिला आगे ही आगे
लगातार बढ़े जाए,
इंसान का बेरहमी से कत्ल इंसान ही
ईश्वर के नाम पर करे जाए,
सोचा नहीं किसी ने
कि कौन सा ईश्वर चाहता होगा
अपने नाम पर यूं जुल्मों सितम करवाना,
कौन सा ईश्वर चाहता होगा
अपने नाम पर निर्दोषों का खून बहाना,
और यह विडंबना कैसी है
कि ईश्वर के नाम पर ही
बहुत से स्वार्थी, चालाक, जाहिल और खूनी लोग
सदियों से आम लोगों की अक्ल पर
धर्म के पत्थर मढ़े जाएं।
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