स्मृति दीप
सौंदर्य भरा जीवन अपना,
सुंदर सुंदर जीवन का क्रम,
बिछड़े जीवन में कितने ,
बाटे मिलजुल प्यार हमें ।।
मन खोया यादों में उसका ,
उससे मन का प्यार जुड़ा ,
जीवन के सूनेपन में भी,
बातें उससे करता रहता ।।
मन बैठा प्रतीक्षा करता ,
आहट काश कभी होगी,
खोया बैठा इंतजार में ,
दुख का कैसा जीवन।।
अरूणाभ युक्त सौंदर्य तेरा ,
पूर्वांचल की गोदी में देख,
विस्मित मेरा मन बोला ,
मिला आज जीवन का पथ ।।
कितना सुंदर आभामंडल,
हुआ अंकित अंतर्मन में ,
अतीत हुआ साकार यहां,
मानो वर्तमान की गोदी में ।।
प्रकृति में डूब गया मन ,
चेतना हुई यहां विहव्ल ,
चल अपने ही नियति में,
सुंदर सा अभिराम मिला।।
जीवन का छोटा सा दर्शन,
समझ नहीं मैं पाया हूं ,
खोने का तेरा दर्द बहुत,
मन विहव्ल कर देता है ।।
पैरों की आहट सदा मुझे ,
विचलित मन कर देती है,
स्वप्न में तुझसे मिलकर,
अफसोस किया करता हूं ।।
दिव्य भावना लेकर चल दी ,
आनंद तुम्हारा अपना धाम ,
पूर्ण तुम्हारी अपनी यात्रा ,
स्मृतियां बची हैं मेरे नाम ।।
एक कलश पर जलता दीपक,
हरता तिमिर भरता प्रकाश ,
आलोकित करता नवजीवन,
अरुणोदय का ले नव प्रकाश ।।
कलश पास बैठी तू तत्क्षण,
कर आई कितना सुंदर श्रृंगार,
मंत्रोच्चारण वेद वाक्य का ,
गूंज रहा अंतर स्थल ललाम ।।
मौलिक रचना
सुंदर सुंदर जीवन का क्रम,
बिछड़े जीवन में कितने ,
बाटे मिलजुल प्यार हमें ।।
मन खोया यादों में उसका ,
उससे मन का प्यार जुड़ा ,
जीवन के सूनेपन में भी,
बातें उससे करता रहता ।।
मन बैठा प्रतीक्षा करता ,
आहट काश कभी होगी,
खोया बैठा इंतजार में ,
दुख का कैसा जीवन।।
अरूणाभ युक्त सौंदर्य तेरा ,
पूर्वांचल की गोदी में देख,
विस्मित मेरा मन बोला ,
मिला आज जीवन का पथ ।।
कितना सुंदर आभामंडल,
हुआ अंकित अंतर्मन में ,
अतीत हुआ साकार यहां,
मानो वर्तमान की गोदी में ।।
प्रकृति में डूब गया मन ,
चेतना हुई यहां विहव्ल ,
चल अपने ही नियति में,
सुंदर सा अभिराम मिला।।
जीवन का छोटा सा दर्शन,
समझ नहीं मैं पाया हूं ,
खोने का तेरा दर्द बहुत,
मन विहव्ल कर देता है ।।
पैरों की आहट सदा मुझे ,
विचलित मन कर देती है,
स्वप्न में तुझसे मिलकर,
अफसोस किया करता हूं ।।
दिव्य भावना लेकर चल दी ,
आनंद तुम्हारा अपना धाम ,
पूर्ण तुम्हारी अपनी यात्रा ,
स्मृतियां बची हैं मेरे नाम ।।
एक कलश पर जलता दीपक,
हरता तिमिर भरता प्रकाश ,
आलोकित करता नवजीवन,
अरुणोदय का ले नव प्रकाश ।।
कलश पास बैठी तू तत्क्षण,
कर आई कितना सुंदर श्रृंगार,
मंत्रोच्चारण वेद वाक्य का ,
गूंज रहा अंतर स्थल ललाम ।।
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