भान दक्षिणायन भए- विजय लक्ष्मी पाण्डेय
December 18, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
भान दक्षिणायन भए...!!!
भान दक्षिणायन भए,
शिशिर सरकारी।पछुआ बयार मोहे ,
तीर सम लाग्यो है ।।
बिकल बौराई मैं,
थर-थर बदन काँप्यो।
ऐसे में पी की ,
हजूरी सतावे है।।
जुड़ी में जोड़े -जोड़े,
पपीहा न बोली बोले।
अँधेरी रैन, जिया,
चैन नहीं पायो है ।।
पाती पर पाती,
पठावन लागी मैं।
पूस की भयावह रैन,
डरावन लाग्यो है।।
कंटक सी रूखी सूखी,
अंखियों नें काजर धुली।
अब तो प्रिय जाड़,
सतावन लाग्यो है।।
तकरार सैन की,
परदेशी बैन की।
पीपर की पाती पर,
सन्देशा एक आयो है।।
रीत गए माघ रैन,
फागुन गुलाल बिन।
चैत्र सखा संग,
होरी पठायो है।।
"विजय" के निहोरे,
आयो ना चकोरे।
माहुर की गाँछ में,
प्रान ढुकायो है।।
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