Yatra vrittant: Rajasthan bhraman by Shailendra Srivastava
यात्रा वृत्तांत : राजस्थान भ्रमण
दिल्ली से हम सबसे पहले माउंट आबू पहुँचे । आबू में हमने साइट सीन देखने के लिए टूरिस्ट बस का उपयोग किया ।
सबसे पहले हमने ब्रह्म कुमारी का मुख्य आश्रम देखा ।आश्रम में जगह जगह सुरक्षा में ब्रह्म कुमारियां तैनात थीं ।कुछ ब्रह्म कुमारियां आने वाले भक्तों के आदर स्वागत कर रहीं थीं ।हमें वह मुख्य प्रार्थना सभा दिखाने ले गईं ।
उन कम उम्र लड़कियों को देखकर मैं सोचने लगा कि इनकी क्या मजबूरी रही होगी जो कम उम्र में गृहस्थ जीवन त्याग कर पूरी निष्ठा के साथ यहाँ आने वालों के सेवा सत्कार में लगीं हैं ।
यहाँ से टूरिस्ट बस संगमरमर से निर्मित एक जैन मंदिर दिखाने ले गया ।नक्काशी से परिपूर्ण ऐसा मंदिर हमने अबतक नहीं देखा था ।
वहाँ से लौट कर हम झील किनारे आ गये ।झील में हमने एक घंटा नौका विहार किया ।उसके बाद टूरिस्ट बस ने मुझे आबूरोड पर छोड़ दिया था ।
आबूरोड से बस से नाथद्वारा हम करीब पांच घंटे में पहुँचे थे । नाथद्वारा मंदिर में काले पत्थर के श्री कृष्ण की सुंदर प्रतिमा का दर्शन किया ।कृष्ण की काली प्र तिमा का क्या रहस्य है, नहीं मालूम ।
नाथद्वारा से बस से हल्दी घाटी आ गये । हल्दी रंग की पत्थरीली मिट्टी होने के कारण इसे हल्दी घाटी कहा जाता है ।
इसी जगह राणा प्र ताप के नेतृत्व में अकबर की सेना से भयंकर युद्ध हुआ था ।युद्ध में मुगल सेना विजयी हुई थी किन्तु राणा प्र ताप पकड़ में नहीं आये थे ।
हल्दी घाटी से लगभग 40 कि.मीटर दूर उन्होंने नये राज्य की स्थापना कर स्वतंत्र राजा के रूप में राज्य किया था ।
हल्दी घाटी के पास एक राणा प्र ताप मेमोरियल संग्रालय है जहां काफी चीजें यानी उनके फौजी लौह वर्दी तथा भारी भरकम भाला भी रखा है ।
हल्दी घाटी से हम उदयपुर किला देखने आ गये ।इस किले के भीतर भिन्न भिन्न समय में बने कई महल देखे ।
राजस्थान में यह सबसे बड़ा किला है जो मेंटेंड भी है ।इसी में बड़ी झील है जिसके मध्य जलमहल है , गर्मी में रहने के लिये ।
उदयपुर से वापस जयपुर आ गये । टूरिस्ट बस से हम आमेर का किला ,विलास भवन,हवा महल ,संग्रहालय तथा जंतर मंत्रर देखा ।
बाजार से पत्नी कुछ जयपुरी साड़ियाँ ,लहँगा की खरीदारी की थी ।
घूमते घूमते थक गये तो वातानुकूलित राज मंदिर सिनेमा हाल में पिक्चर देखा गया ।
जयपुर से रात ११ बजे चलने वाली ट्रेन मे पहले से आक्षरण था ।सिनेमा खत्म होने पर हम रेलवे स्टेशन लौट आये ।और ट्रेन से दिल्ली आ गया ।
बड़ा बेटा आशीष 1999 में इंजीनियरिंग पास कर साहिबाबाद आ गया था। फिलहाल वह फिल्मसिटी नोयडा में श्याम एक्सल में नौकरी कर रहा था ।
2002 में नौकरी करते हुये बीएसएनएल में जेटीओ.के लिये सलेक्शन हो गया था । नोयडा की नौकरी छोड़ कर वह जबलपुर ट्रेनिंग करने चला गया ।दस महीने की ट्रेनिंग के बाद पहली पोस्टिंग गोवा में हुई थी ।गोवा में छह साल नौकरी करने के बाद उसने सरकारी.नौकरी छोड़ कर रिलायंस ज्वाइन कर ली थी ।
रिलायंस में पहली पोस्टिंग नवी मुम्बई में मैनेजर पद हुई थी ।
साल 2002 में छोटा बेटा अभिषेक भी इंजीनियरिंग क्लीअर कर लिया था । एक साल तक कोई जाब नहीं मिलने के कारण वह थोड़ा परेशान रहा ।
मई 2003 में नोयडा में एक इंजीनियरिंग कालेज में उसे एम.सी.ए.का क्लास पढाने का जाब मिला था बारह हजार रुपये मासिक वेतन पर ।
लेकिन अभी एक महीने ही हुये थे कि सरकारी उपक्रम सी.डाट में रिसर्च इंजीनियर के लिए जून 2003 में उसका सलेक्शन हो गया ।
बेटे ने कम्प्यूटर पर दस बजे परीक्षा दी तथा चार बजे इंटरव्यू दिया औऱ छह बजे परिणाम घोषित हुआ था । यानी सब कुछ एक दिन ही हो गया था ।
उस समय हम पति पत्नी लखनऊ में भांजे की शादी में शामिल थे ।उसने फोन पर यह शुभ सूचना दी थी ।
जुलाई में उसे भी निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से बंगलौर के लिए ट्रेन में बैठा दिया था ।
बंगलौर पहुंच कर उसने सी.डाट ज्वाइन कर लिया तो मेरे मन को शांति हुई । बेटे ने फोन पर बताया कि सी डाट के गेस्ट हाऊस में रहने का प्रबंध भी हो गया है ।
दोनों बेटे की नौकरी लग जाने से हम निश्चिंत हो गये । मेरी स्वयं की नौकरी का आखिरी साल चल रहा था । इसलिये इसबार शरद अवकाश में हम दोनों मथुरा वृंदावन श्री कृष्ण की नगरी घूमने आ गये ।
मथुरा में श्री कृष्ण का जन्म स्थान देखने पैदल जा रहा था ।रास्ते में एक पण्डा पीछे लग गया था ।बड़ी मुश्किल से उससे पीछा छुड़ाया था।
वहाँ से हम मंदिरों की नगरी वृंदावन पहुँच कर एक धर्मशाला में कमरा लिया ।
नहा धोकर हम दोनों बाँके बिहारी मंदिर में आरती देखने गये ।
काफी भीड़ थी शायद किसी भक्त ने सिंगार कराया है ।
बाँके बिहारी मंदिर का निर्माण 1564 ई.में स्वामीश्री हरिदास ने कराया था ।
संकरी गलियों में घरनुमा मंदिर देखते हुये चल रहे कि एक विदेशी कृष्ण भक्त मिला ।मैंने कहा,बहुत पतली गली है।
वह तपाक से बोला, तभी तो इसे कुंज गली कहते हैं ।
हम लोग शाकाहारी होटल में खाना खाकर धर्म शाला में आ गये । पैदल चलते चलते थक गये थे । रात गहरी नींद में सोये ।
अगले दिन कुंज गली से गुजर रहे थे कि एक बंदर आँखों पर. झपट्टा मार कर मेरा चश्मा लेकर पेड़ पर चढ़ गया ।
एक राहगीर ने कहा कि एक पैकेट बिस्कुट दूकान के टीन पर रख दे ,बंदर बिस्कुट लेकर चश्मा वहीं छोड़ देगा।
उसके कहने पर बिस्कुट पैकेट खरीद कर टीन पर रख दिया ।बंदर पेड़ से उतर कर पैकेट ले गया ।चश्मा वहीं छोड़ गया । इसतरह चश्मा वापस मिला ।
वहाँ से हम उस स्थान को.देखने गये जहाँ श्री कृष्ण ने बाल्यावस्था में कालिया नाग का मद मर्दन किया था ।
सबसे बाद. मैं इस्कान मंदिर देखने गया ।पूरा मंदिर संगमरमर का बना .है । साफ सफाई का पूरा बंदोबस्त था ।
इस मंदिर का निर्माण 1975 में श्री प्रभुपाद ने कराया है ।कृष्ण बलराम का दर्शन करके वापस धर्म शाला आया । कमरे का किराया भाड़ा देकर मथुरा से वापस दिल्ली आ गया ।