यादें - जयश्री बिरमी
November 07, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
यादें
दिवाली तो वो भी थी
जब ऑनलाइन शुभेच्छाएं दी थी हमने
और एक ये भी हैं जब रूबरू हैं सभी
बनाई थी बहुत मिठाइयां भेजने के लिए
अबकी खायेंगे सब मिलकर
पूजा भी की थी बिल्कुल तन्हा
अबकी मिल के केरेंगे पाठ लक्ष्मी जी का
खूब बिरहा सह ली हैं हमने
अब तो दिन मिलन के आ गएं हैं
खूब मिलेंगे सभी से पर दोस्तों भूलना नहीं हैं करोना के रिवाज
बेमुर्रव्वत हैं ये मुड़ मुड़ के आता हैं
हाथ धो लो
मास्क पहन लो और रखो थोड़ी दूरियां
अच्छी हैं ऐसी दूरी,
वरना याद करो वो मजबूरियां
तरस गए थे बाहर आने को
चूहे जैसे दिन कटते थे
बाहर आओ खाना बटोरों
घर वाले बिल में घुस जाओ
अब अगर जीना हैं बन के मानव
बस करोना काल के अनुशासन का पालन करों
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