Shesh smritiyan by Dr. H.K. Mishra
November 13, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
शेष स्मृतियां
चलो एक बार मिलते हैं फिर से,
अजनबी बन के हम दोनों उसी तट,
वही मंदिर आश्रम चट्टानों के घेरे में ,
वही झरना वही धारा अच्छे लगते थे ।।
कोई तृष्णा नहीं हममें दोनों पास बैठे थे,
कभी सोचा नहीं हमने जुदाई के छन होते,
विदाई ले चले दोनों नहीं अब शेष जीवन है,
किनारा तो किनारा है, नदी की शेष धारा है ।।
मिलने और बिछड़ने का भी अच्छा बहाना है,
यादों में बसी है तुम वही झरना किनारा है,
मिलन संयोग अपना था पहला बसंत था मेरा ,
किनारे पर बनी कुटिया रहने का सहारा था ।।
माह कितने बिताए थे अद्भुत प्रेम हमारा था,
सभी तो लोग अपने थे साथ भी तुम्हारा था,
चलो फिर बहीं मिलते, यादों को लिए मन में,
प्रकृति भी तो अपनी है, गीतों का सहारा है। ।।
कहना कितना आसान मिलना भी कैसा ,
जुदाई की मर्यादा मौन बना लांघेगा कौन ?
कश्ती छोड़ चली तट लिए जीवन का मोह ,
वर्तमान हमारा देता है यह कैसा संदेश ।।?।।
अफसोस है इतना अहसास है कितना,
कसक बहुत है तड़प न कम मेरे जीवन में,
संतोष न मिलता तृप्ति सी तुम आ जाती हो,
जीने की नहीं इच्छा जिंदगी क्यों बनी मेरी ।।
पास न पथ है दूर न दिखता ,
प्रणय तुम्हारा पावन गंगाजल ,
मार्ग हुआ अबरुद्ध हमारा,
छोड़ गई तू जब से मुझको।
बिखर रही स्मृतियां हमारी ,
स्मरण हमारा गौण हुआ है ,
खोने का जो दर्द मिला है ,
भरपाई होना है मुश्किल ।।
गिने हुए कुछ दिन महीने ,
अभी अभी तो बीते हैं ,
पलकों के आंसू सूखे नहीं,
अधर हमारे बिल्कुल भीगें ।।
लेखन के स्याही आंसू बन ,
दर्द बिखर गए मोती जैसे ,
शब्दों को बांध सकूं मैं कैसे,
गूंज उठे गीत मेरे दिल में ।।
प्यार से थांबा था हमने ,
हाथ प्रणय की बेला में ,
विश्वास मेरा बन गया था,
छूटेगा हाथ न जीवन में ।।
छूटा हाथ अचानक तेरा ,
कैसी प्रकृति की लीला ,
सहज संभल नहीं पाया ,
व्यथा बनी मेरे जीवन की ।।
पतवार लिए जीवन तट आये ,
मेरी नौका अभी घाट पड़ी है,
अभी लक्ष्य हमारा बहुत दूर है,
चलता चलता थक आया हूं ।।
शैल शिखर के नीचे नीचे,
छोटी-छोटी पगडंडी पर ,
सूरज भी तो अस्त हुआ ,
अंधकार छाने को तत्पर, ।।
यादें अतीत की बनी हुई है,
बार-बार इस पथ पर आए,
आगे इस पर जा न सकूंगा ,
तेरा साथ न मिल पाएगा ।।
स्मृति तुम्हारी आगे आकर,
बार-बार कुछ कह जाती है,
जीवन के सूनेपन को कह ,
अब और कौन सहलाएगा ।।??
दुखद अंत बिछड़न से होगा,
अज्ञानी मैं समझ ना पाया ,
याद तुम्हारी शैल शिखर ,
रह रह कर आ जाती है ।।
बरबस हाथ नजर उठ जाते,
गगन मार्ग पर तुझको ढूंढते,
तुम्हें ना पाकर आंसू आते ,
सपनों में हम खो जाते हैं ।।
कोई ऐसी जगह नहीं है ,
जहां नहीं तुझको मैं ढूंढा,
नसीब नहीं तुझको पाने का,
कहां कहां ढूंढू अब तुझको ।।
तुम्हें भूल गए सब लोग,
पर हम भूल नहीं पाए,
जीवन का परिणाम ,
हम समझ नहीं पाए ।।
अर्पण किसको करना है,
लघु जीवन अपना सारा,
याद तुम्हारी हर क्षण ,
बनी स्मृति शेष हमारी ।।
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