प्रिय के देश
तुम भी उनके हो प्रिय,
मैं भी उनकी प्रियतमा।
जिसे ढूँढती है अन्तर्मन,
पूजती है सारा जहाँ
जिस प्रिय के हो आशिक
उनसे आशिकी है मेरी
शिद्दतों से बिछुड़े है हम
कायनात भी करती यादें
दर-दर करती फरियादें
खोजती है कई रूपों में
अळख हमारे है अन्दर
बस राह भटक गये हैं
खाक छाना करते हम
वो मिलते हैं प्रेम वन में
सूरत की नाव बनाकर,
प्रिय के देश चलें हम।
Comments
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com