कैसा जीवन
जीवन है समरसता की धारा
छल प्रपंचों को करें किनारा
सादगी नर जीवन की पहचान
मानव सब जीवों में बुद्धिमान
दानवी प्रवृति नहीं तेरा श्रृंगार
सुकर्म पथ पर बरसाओ प्यार
रिस्तों की बागडोर संभालो
छोटी गलतियों न देखो भालो
जीवन है महासंगम की धारा
प्रेम समन्वय हो विचार धारा
मीठी बोली इंसान बहाओ ना
सुखी टूटी रिस्ते फिर उगाओ ना
मरी आत्मा को जिलाओ ना
समरसता की धारा बहाओ ना
धोखे नहीं तुम्हारी फितरत है
वैमनस्यता को दूर भगाओ ना।
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