जीवनपथ - भारती चौधरी
November 07, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
जीवनपथ
उठा तर्जनी परप्राणी पर
छिपा निज दुर्गुण किस पंथ रखा
तनिक विचार किया स्वयं पर
निज दायित्व किस स्कंध रखा
मन मार लिया हालातों से
या अपने निरुत्साहित भावों से
गिनता रहा उमर कितनी बीतती गयी
जंग कौन सी जो तुझसे जीती गयी
जोड़ रहा सम्पत्ति अर्जित
की कितनी तात ने
प्रश्न उठा निज पर भी
तूने किया क्या अर्जित अाप में
स्वपन अनोखे तू देख रहा
किन्तु श्रम तुझसे हो ना रहा
जर्जर सा गृह भी तू ना बना सका
इक सुख भी निज मां को तू ना दिला सका
ये कैसा जीवन जीता आया
कुल का यश तूने तनिक न बढाया
नाम तेरा ना अब तक कोई जाना
कौन तुझे तेरे गुणों से पहचाना
वक्त कहां तक बीता है
उम्र कहां अर्धशती पार गई
कर धारण श्रम का कमान
चलाता जा प्रयास के तीर कई
माना विलंब बहुत हुआ
तेरा अवलंब ना कोई हुआ
किन्तु कर क्या तेरे अशक्त हैं
तेरा स्वाभिमान तुझसे कहां विभक्त हैं
तू बता रहा जिनकी त्रुटियां
वह तेरे हेतु निरर्थक है
टटोल तनिक निज अंतर को
जीवन पथ में क्या सार्थक है
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