Bachpan aur budhapa by Jitendra Kabir
November 15, 2021 ・0 comments ・Topic: Jitendra_Kabir poem
बचपन और बुढ़ापा
एक उम्र में...
मान ली जाती हैं
ज्यादातर फरमाइशें,
अंट-शंट बकने का भी
शान से प्रदर्शन करवाया
जाता है,
रूठने पर और ज्यादा
प्यार आता है,
'बचपन'
उगते सूरज की भांति
सबका अर्ध्य पाने का
समय है।
एक उम्र में...
खत्म होने लगते हैं
ज्यादातर शौक और
दम तोड़ने लगती हैं इच्छाएं,
कई बीमारियों से ग्रस्त होकर
इंसान हो जाता चिड़चिड़ा भी,
'बुढ़ापा'
ढलती सांझ की भांति
उत्तरोत्तर मद्धम पड़ते जाने का
समय है।
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com
If you can't commemt, try using Chrome instead.