अन्तर्द्वन्द
अजीब पहेली से है
सुलझ नहीं पा रही
नफरत और प्रेम की
गुथ्थियाों का ये मंजर
असमंजस की स्थिति
जाने किनारा क्या हो
शब्दों की मझधार है
कैसे उबर पाए हम
चल रही अन्तर्द्वन्द
उहा पोह से निकलूं कैसे
झंझावात में हूं पडे़
इन मन की स्थितियों में
कैसा हो जीवन प्रभाव
साँप-छछुन्दर की गति
चक्रव्युह में आ फँसी
जाने निदान क्या हो
क्या यही है जीवन
की पराकाष्ठा का अंत
संबल की धरातल पर
चूमते गगन शिखरतल।
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