Antardwand by Dr. indu kumari
November 07, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
अन्तर्द्वन्द
अजीब पहेली से है
सुलझ नहीं पा रही
नफरत और प्रेम की
गुथ्थियाों का ये मंजर
असमंजस की स्थिति
जाने किनारा क्या हो
शब्दों की मझधार है
कैसे उबर पाए हम
चल रही अन्तर्द्वन्द
उहा पोह से निकलूं कैसे
झंझावात में हूं पडे़
इन मन की स्थितियों में
कैसा हो जीवन प्रभाव
साँप-छछुन्दर की गति
चक्रव्युह में आ फँसी
जाने निदान क्या हो
क्या यही है जीवन
की पराकाष्ठा का अंत
संबल की धरातल पर
चूमते गगन शिखरतल।
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