मोहक रास लीला...!!
मुग्ध कर देनें वाला अनुपम लावण्य , सुबह की धूप सा छिटका हुआ सौंदर्य ,साँझ की जैसी लटकती अलकें ,दुपहरिया जैसा रुतबा ।
ऐसी ही तो थीं नव यौवनाओं की टोली जिन्हें कृष्ण कान्त का आमंत्रण मिल चुका था और रास लीला में समाहित हो जानें को आतुर शीघ्र ही घर के कार्य निबटानें में जुटी थीं , सहसा कृष्ण की बंशी बज उठी ।
बेसुध सी उतावली जा पहुँची गोपिकाएँ ,अद्भूत वृन्दावन शरद पूर्णिमासी की चाँदनी चहुँओर छिटकी हुई
वाद्ययंत्र सम्भाले गये ,मधुर -मधुर संगीत से सराबोर ,आनन्दित वातावरण ,रसमय पाजेब की छनछन , कंकण की खन खन के बीच ठिठोली करती गोपिकाएँ ।कृष्ण कान्त के इर्द - गिर्द मंडराती मनोरम दृश्य ।
वातावरण मधुरिम हो चला । अहा ...! पवन ने भी
झोंके लिए ,बेसुध सी गोपबालायें प्रेम रस पीनें को उतावली ,मूंदे नैंन नशीली चितवन ,चटकीली पंच तोरिया चुनर में इतराती ,कृष्ण कान्त ही कहाँ रोक पाते स्वयं को । समय से पूर्व ही बाँसुरी टेर देते ।
थिरक उठे पाँव ,बज उठे घुँघरू ,यमुना हिल्लोरे लेनें लगीं मनो उठकर वातावरण में तिरोहित हो जाना चाहती हो ,बड़ा ही अद्भूत मनोरम दृश्य ...
बंशी की धुन पर थिरक रही,
वह कृष्ण कान्त की अनुहारिन।
सुन्दर सुखमय पूरनमासी ,
है छिटक रही चहुँओर चांदनी।।
यमुना ले हिल्लोरें गातीं,
पवन झकोरे संग बलखाती।
बरस रही पुष्पावली जहँ
दरशन को देव तरसते तहँ ।।
श्री "लक्ष्मी" आईं सखियन संग,
"विजया" आईं श्री लक्ष्मी संग।
वर्णन के वर्णन कहि न जाय,
श्री श्याम विराजे गोपिन संग।।
यह अद्भूत महिमा मोहन की,
हैं मोहि रहे त्रिलोकी को।
पावन धरती वृन्दावन की,
जहँ मोहन बसते कण-कण में।।✍️
जय कृष्ण कृष्ण राधे कृष्णा
जय कृष्ण कृष्ण राधे कृष्णा
श्री कृष्ण चन्द्र राधे कृष्णा
! ! श्री कृष्ण चन्द्र राधे राधे !!
जय जय कृष्ण कृष्ण राधे कृष्णा
श्री कृष्ण चन्द्र राधे राधे जय जय
कृष्ण कृष्ण राधे राधे राधे राधे
!! कृष्णा कृष्णा श्री कृष्ण चन्द्र राधे !!
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