Aarya sabhayata meri by Dr. H.K. Mishra

 आर्य सभ्यता मेरी

Aarya sabhayata meri by Dr. H.K. Mishra


मानव सभ्यता धरा धाम का,

प्राचीन धरोहर अपना है ,

सिंधु तट पर विकसित होकर,

घाटी घाटी फैली आयी  ।।


नदी किनारे मानव जीवन,

धीरे-धीरे फैल रहा था ,

मानव की इच्छा जहां हो पूरी,

भू भाग वही तो उसका है ।।


अंकुरित होने लगा प्रेम जब,

मानव मन में भू भागों का,

नर नारी बंध गए किनारे ,

सिंधु नदी की घाटी में  ।।


प्रेम बढ़ा मानव के बीच,

बसी बस्तियां धीरे-धीरे ,

मीठे जल से प्यास बुझी ,

नदियों की ही घाटी में ।।


प्रणय कथाएं भी उपजी  ,

इसी नदी की गोदी में ,

मानव तो मानव बन आया,

लिए नई सभ्यता भूमि में ।।


कहता है इतिहास हमारा,

सिंधु घाटी से हम आए ,

बढ़ी सभ्यता धीरे-धीरे ,

सिंधु से हिंदू बन आए ।।


भू भागों पर छाते आए ,

आर्यावर्त की गोदी में ,

आर्यों का इतिहास हमारा,

विश्व पटल पर छाया है ।।


कहते हैं धरती है अपनी ,

नील गगन के नीचे में ,

फैल रही सभ्यता हमारी,

धरा धाम के प्रांगण में ।।


विश्व इतिहास में भरे पड़े,

नदी घाटी की सभ्यताएं ,

मिस्र सभ्यता नील नदी की,

मेसोपोटामियां आदि आदि ।।


हम लिखते सिंधु घाटी पर,

विकसित मेरी सभ्यता यही,

सिंधु  हिंदू  हिंदुत्व दिया ,

इसका भी ज्ञान अधूरा क्यों ।।


गुलामी का दर्द बहुत है,

सब खोया अस्तित्व यहां,

आज  मेरी सोच बहुत है,

मातृभूमि की प्यास कहां है ।।


आर्य सभ्यता उत्तराधिकारी,

हम भारत के कर्णधार हैं ,

हमें गर्व है सभ्यता हमारी,

राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत है  ।।


जड़ जितना जिसका गहरा,

टिका धरा पर उतना है ,

कहता है इतिहास हमारा,

वैदिक सभ्यता अपनी है। ।।


परंपरा है जिसकी अपनी,

उस पर है अभिमान हमारा,

संस्कृति और सभ्यता हमारी,

संस्कार हमारा अपना है। ।।


मौलिक रचना

                      डॉ हरे कृष्ण मिश्र
                       बोकारो स्टील सिटी
                         झारखंड।

Comments