जिंदगी छोटी कहानी बड़ी ।
हमारे चारो तरफ कहानियों का जाल सा फैला हुआ है । यह दीवार पर टँगी पेंटिंग नहीं है बल्कि एक जीती-जागती तस्वीर है जो एक आवाज पर फ्रेम से निकल कर हमारे सामने खड़ी हो जाएगी । रात मेरे सपने में आ गई । मैंने पूछा , क्या तुम्हारे पति एक आँख से नहीं देख पाते ? उसने कहा नहीं , दोनों आंखों से भी नहीं देखें तो क्या ? मैं गाँधारी नहीं बन सकती ! मैं स्त्री हूँ ! सृजन का दुःख सुख दोनों सहेज सकती हूँ किन्तु ........! किन्तु क्या ........? एक अजीब सी खामोशी थी मेरे और उसके बीच । टप....... टप ......टप की आवाज निस्ब्धता को भंग कर रही थी । मैं उसके करीब गई ......उसे गले से लगाया ......बर्फ की तरह ठंडी औरत किसी प्रेतात्मा की तरह कंधे पर झूल गई । उफ्फ....... वेदना की बर्फ मेरे कंधे के संवेदना की गर्मी से पिघलने लगी और वह फूट-फूट कर रो पड़ी ......! नि : शब्द रात्रि में रूदन की आवाज ....... एक कहानी सुना रही थी ।
शादी....जो दो शरीर के मिलन का माध्यम है .....वही दो आत्माओं की दूरी का कारण भी बन जाता है । प्रेतात्मा अब सिसक रही थी । मैंने पानी का ग्लास उसकी ओर बढाया । अब वह शांत थी । उसके भीतर का द्वन्द्व मेरी बेचैनी बढा रहे थे । वह कहने के लिए सूत्र ढूँढ रही थी । मैंने दीवार पर टँगी उसकी तस्वीर उसे दिखाई और वह एकदम से चैतन्य हो गई ।
हाँ ......यह मैं ही हूँ ...... एक स्त्री ......जिसे दीवारों में इस तरह जकड़ दिया गया है कि उसे भोर का सूरज और दिन की तपन का फर्क मालूम न हो.......बाहर शोर है या शांति इसका पता न चल सके ....... फूलों के वे रंग जो बचपन में उसने तितलियों को पकड़ते हुए देखा था ....... उसे अब याद नहीं ! वह बस एक ही आवाज पहचानती है .........खाना लाओ ....... बिस्तर पर आओ ।
इससे अच्छा तो कारागार है जहाँ के बंदियों को परिजनों से मुलाकात भी कराया जाता है । एक वह है कि अपने ही घर में कैद है ........! ऐसा नहीं कि वह अनाथालय में पली बढी है...... ऐसा नहीं कि उसने स्कूल कॉलेज का मुँह नहीं देखा है ....! ऐसा नहीं कि उसे सखियाँ सहेलियाँ नहीं थी ........। सबकुछ होते हुए भी आज कुछ नहीं है । पति हैं .......दो प्यारे बच्चे हैं लेकिन जो होना चाहिए वही तो नहीं है । शक की भोथरी तलवार प्रेम के इतने टुकड़े कर चुकी है कि उसे किसी फेवीक्विक से जोड़ा नहीं जा सकता ।
अब वह एक जिंदा लाश है ........! सक्रिय मस्तिष्क और बेजान जिस्म .......! सुनोगे तो मुहब्बत करने लगोगे .........! इसलिए वह फ्रेम में जड़कर दीवार पर टँग गई है .........! ज़रूरत पड़े तो उतार लेना ........ इच्छापूर्ति कर लेना .......वह फिर दीवार पर टँग जाएगी ......! हाँ वह एक औरत है ......!
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