Mushkil dagar hai by Jitendra Kabir
September 30, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
मुश्किल डगर है
एक तो सच्चाई के पथ पर
चलना दुश्वार होता है
ऊपर से बुराई का आकर्षण
भी दुर्निवार होता है,
अकेले ही चलना पड़ता है
इस मुश्किल डगर पर
जबकि बुराई के प्रोत्साहन को
हर यार तैयार होता है,
विषय-विकारों से बचे रहना
कहां आसान होता है
ऊपर से हमारे आसपास ही
बहकाने का सामान होता है,
नित्य नये प्रलोभनों से खुद को
जो बचाता चला जाए
वही इंसान ही तो सही अर्थों में
महान इंसान होता है।
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