Meri beti by Jay shree birmi
September 30, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
मेरी बेटी
जब देखें कोमल हाथों को
बाजू के पास मेरे
एहसासों से भर गया था मन और ह्रदय दोनों मेरे
जो मांगा था रब से वही तो बाजू में मेरे धरा था
भूल सारी पीड़ा प्रसव की
खो गई में देख स्वप्न सी परी को
सुंदर कली सी ताकती मेरा ही चेहरा
पहचान ने की कोशिश कर रही थी वो
क्या यही हैं जिसने मान मन्नते
उसे बुलाया था घर अपने
घर की रौनक और उजाले सी वो
बढ़ती गई उम्र में छा गई वह परिवार में
प्यारी वह चाचा की पापा की दुलारी
भैया की वह सहयोगी बनी
और खेली उस के भी संग
बड़ी होती बेटी कब मां बन जाती हैं
पता न था खोई मां को बेटी ही में पाया हैं
वैसे भी बिदाई की घड़ी मुश्किल होती है
जब वो हो बेटी की असहनीय बन जाती हे
पर खुशी यह थी की उसने भी एक बेटी पाई हैं
देख दोनों को मैंने ये बात दोहराई
देखो आज मां भी आई बेटी भी बचपन बन के आई
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद
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