Kamkaji mahilaon ki trasdi by Jitendra Kabir
कामकाजी महिलाओं की त्रासदी
कामकाजी महिलाएं
पिसती हैं प्रतिदिन
घर की जिम्मेदारियों और नौकरी के बीच,
घर के कामों को
समय से ना निपटा पाने के लिए
सुनती हैं ताने अक्सर,
नौकरी में भी हो जाती हैं पैदा कई बार
असहज स्थितियां,
घर- बाहर का दवाब दिखाता है अपना असर
शरीर और दिमाग दोनों पर,
बार-बार बीमार पड़ते शरीर और
बेचैन थके दिमाग के साथ
वो कोशिश करती हैं भरपूर
किसी तरह 'पूरा' पड़ने की
मगर नहीं होती ज्यादातर कामयाब,
स्वयं को 'मार्डन' दिखाने वाले घरवाले,
उसकी कमाई पर तो रखते हैं
पूरा अधिकार
लेकिन नहीं बनते बहुधा
उसके रोज के संघर्ष के हिस्सेदार,
औरत के प्रति उनकी
उदारवादी सोच
सीमित होती है सिर्फ पैसे घर आने
के लालच तक,
नौकरी करके
थोड़ी सी आर्थिक आजादी की
उम्मीद रखने वाली महिलाएं
अक्सर वंचित रहती हैं
अपने खाते के एटीएम कार्ड से भी,
जबकि उनकी कमाई से
बहुत बार दुनिया को अपनी शान
दिखाते हैं उनके घरवाले।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314