Jana us par hai by siddharth gorakhpuri
September 30, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
जाना उस उसपार है ,
जाना उस उसपार है ,मगर मैं किनारे चल रहा हूँ।
बात ये है कि मैं खुद के सहारे चल रहा हूँ।
थोड़ा ही सही ,आहिस्ता आहिस्ता बदल रहा हूँ।
बात ये है कि मैं खुद के सहारे चल रहा हूँ।
दरिया पार करने को ,जी अक्सर मचलता है।
कर्म की नाव पर हौसलों का पतवार चलता है।
धीरे ही सही ,समय के माफ़िक अब ढल रहा हूँ।
बात ये है कि मैं खुद के सहारे चल रहा हूँ।
न मोह है ,न माया है ,न सरोकार कोई।
कयाश ये है के हो जाए परोपकार कोई।
बमुश्किल रह रह कर , अब सम्भल रहा हूँ।
बात ये है कि मैं खुद के सहारे चल रहा हूँ।
खुद को अब मैं भीड़ से अलग दिख रहा हूँ।
आहिस्ता-आहिस्ता कुछ न कुछ लिख रहा हूँ।
हौसला बरकरार है के रेत सा फिसल रहा हूँ।
बात ये है कि मैं खुद के सहारे चल रहा हूँ।
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