Hamari raahen alag hai by Jitendra Kabir

 हमारी राहें अलग हैं

Hamari raahen alag hai by Jitendra Kabir


अगर तुम चाहते हो,

मैं न बोलूं

गलत को ग़लत

और सही को सही,

बेजुबान बन जाऊं या

फिर बोलूं सिर्फ उतना

जितना अच्छा लगे

जमाने भर को,

तो मेरी और तुम्हारी

राहें अलग हैं।


अगर तुम चाहते हो

मैं न देखूं

देश और समाज में

जहर घोलने की साजिशें,

आंख मूंदकर भरोसा

कर लूं

झूठे प्रचार और वाहियात

तर्कों पर

तो मेरी और तुम्हारी

राहें अलग हैं।


अगर तुम चाहते हो

मैं न सुनूं

आजादी पर मंडरा चुके

खतरे की आहट,

सत्ता विरोध को देशद्रोह

साबित करने के

प्रयासों का करूं समर्थन,

तो मेरी और तुम्हारी

राहें अलग हैं।


            जितेन्द्र 'कबीर'


यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।

साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'

संप्रति - 7018558314

पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश

संपर्क सूत्र - 7018558314

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