Daulat by Siddharth gorakhpuri
September 30, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
दौलत
तेरी फितरत ऐसी है ,कि सबकी जुबान बदल देती है।
बुराइयों का लिबास ओढ़े व्यक्ति की पहचान बदल देती है।
तेरे अकूत होने से सारे दोष मिथ्या हो जाते है,
तू तो अच्छे अच्छो का ,खानदान बदल देती है।
तू है तो इज्जत है और सोहरत है।
नही है पास तो , ढेर सारी तोहमत है।
तूँ तो अक्सर रिश्तों की दुकान बदल देती है।
तेरी फितरत ऐसी है कि सबकी जुबान बदल देती है।
बड़ी अजीब होती है जिंदगी बेकारी के दौर में।
अच्छा बुरा हो जाता है, अपनी लाचारी के दौर में।
असल मायने में जिंदगी का , मुकाम बदल देती है।
तेरी फितरत ऐसी है कि सबकी जुबान बदल देती है।
हाथों की मैल जो पहले कहते थे वही दाग अब अच्छे है।
भाषा बदली परिभाषा बदली नही रहे अब बच्चे हैं।
धन की जगह रिश्तों का नुकसान बदल देती है।
तेरी फितरत ऐसी है कि सबकी जुबान बदल देती है।
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