Bali ki bakari by Jitendra kabir

September 26, 2021 ・0 comments

 बलि की बकरी

Bali ki bakari by Jitendra kabir


एक चालाक आदमी

एक आजाद घूमती बकरी को

उसकी पसंदीदा घास का लालच देकर

अपने बाड़े में ले आया,


बकरी के चारे पानी का इंतजाम करके

फिर उसे अपना गुलाम बनाया,


बकरी का दूध निकाल थोड़ा खुद पिया

और थोड़ा बाजार में बेच आया,


बकरी के मल-मूत्र से

अपने खेतों को उपजाऊ बनाया,


बकरी के बालों से

पश्मीना बना खूब मुनाफा कमाया,


बकरी की वंशवृद्धि से

अपना बड़ा कारोबार चलाया,


और बकरी जब बूढ़ी हुई

तो काट कर उसको मांस बेच खाया,


यहां तक की उसकी 

खाल उतारकर आदमी ने अपने लिए

कई तरह का उपयोगी सामान बनाया,


हमारे लोकतंत्र में यह बकरी कौन है

और यह आदमी है कौन?

इस सवाल पर इस देश कर्णधार

रहते हैं हमेशा मौन।


                             जितेन्द्र 'कबीर'

यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।

साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'

संप्रति- अध्यापक

पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश

संपर्क सूत्र - 7018558314

Post a Comment

boltizindagi@gmail.com

If you can't commemt, try using Chrome instead.