*वर्तिका जल रही*
नित वर्तिका है जल रही,
रौनक जहां को कर रही।
स्वयं को जलाये प्रतिपल
दैदीप्यमान जग को कर रही।
स्त्री की गरिमा भी सम है
नित्य भीतर जल रही,
रौशनी परिवार में भर रही।
दग्ध अगाध ज्वाला लिये
शान्ति की मशाल बनी है।
प्रकाश की आभा स्वर्ण सी,
अरुणिमा की आभा भर रही।
अवनी की गति यही,
अनेक आतंक को झेलकर,
अन्न-धान उपहार भेट देती है।
है वर्तिका जल रही,
आशा की किरण भर रही।
दे रही संदेश हमें ,
स्वयं को जलाये जा
कर्म योगी आदित्य सम।
भविष्य को निखारना,
जले ज्यों वर्तिका की तरह
आलौकित करे सारा जहां।।
हे शमा जल स्वयं ही,
रौशन जहां को कर रही।।
------अनिता शर्मा झाँसी
------मौलिक रचना
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