Meera diwani kanha ki by Indu kumari
मीरा दीवानी कान्हा की
मीरा दीवानी कान्हा की
प्रेम से छलकत जाय
जागत रहे दिन -रात
फिर भीदरस ना पाय
शुली ऊपर सेज है
लगी प्रेम की डोर
लागी ऐसी लगन है
कोशिश करी पुरजोर
जब तलक मिले नहीं
छोड़ी न आस की डोर
गिरधर नागर को पायी
करी तप करजोर
प्रेम की ताकत में
ठहर न पावै कोय
प्रीत के बल से लखावे
दूजा ना देखे कोय ।
स्व रचित
डॉ. इन्दु कुमारी हिन्दी विभाग मधेपुरा बिहार