shabdo ki chot kavita by samay singh jaul delhi

July 23, 2021 ・0 comments

शब्दों की चोट

shabdo ki chot by samay singh jaul delhi
शब्दों की चोट जब पड़ती है। 
 चित्त में चेतना की चिंगारी निकलती है।। 
 जैसे बसंत में भी पलास के फूलों में, 
 धू- धू आग धधकती है।।
 शब्द रूपी हथौड़े, 
 जब मति पर मारे जाते। 
 अपने सांचे में ढाल कर, 
 सोचने को मजबूर कर जाते।। 
शब्द खड़ा करते, उस खाई के विरुद्ध । 
जो तेरे शिक्षा के मार्ग , 
में बनते अवरुद्ध।। 
 शब्द जब सुलगते हैं । 
आग में तब्दील होते हैं ।। 
शब्दों से चिराग होना । 
चिंगारी व आग होना ।। 
शब्दों की चोट , कभी जुदा करती है । 
राख में भी एक, चिंगारी पैदा करती है।। 
 यह चिंगारी जब दिल में लगेगी। 
 अंगार भड़क कर शोला बनेगी।। 
 यह चिंगारी कभी नहीं बुझती। 
 जब शब्दों की चोट पड़ती है। 
चित्त में चेतना की चिंगारी निकलती है।। 

 स्वरचित मौलिक रचना 
समय सिंह जौल
अध्यापक दिल्ली 8800784868

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