idhar awaze bahut hai by prem prakash uttrakhand

July 23, 2021 ・0 comments


इधर आवाजें बहुत हैं -------

idhar awaze bahut hai by prem prakash uttrakhand




चलते-फिरते
उठते-बैठते
खाते-पीते
सोते-जागते
अंदर-बाहर
ऊपर-नीचे
इधर-उधर
शायद बसासत है
इन्सान रहते होंगे।


क्यों...?
आवाजें नही होती
खग,परिन्दों
कीट-पतंगो
पेड़-पौधों
फल-फूलों
जानवरों की।
या नही होती हैं
गिरते झरने, बहती नदिया
ठहरे समन्दर की।
पानी बजता तो है
मगर आवाज नही होती है
ताल-तलैया, सरोवरों की।


पहाड़ो की, गलेशियरों की
हवा, बादलों की
बारिश के पानी की बूदों की।


आवाज
पूर्णिमा का चांद
अमावस की रात
की भी होती हैं।


आवाज नही हैं
संगीत नही हैं
क्रंदन नही है
गुंजन नही है
नाद नही
अनुनाद नही हैं।
शून्य है
पर शिखर नही हैं
आदि-अंत दोनों हैं
चीख, पुकार सब है

दब गयी हैं ?
इंसानी आवाजों के तले।
प्रयास बदस्तूर जारी हैं अभी भी
इंसानी बस्तियों में
क्योकि....
इधर आवाजें बहुत हैं।


प्रेम प्रकाश उपाध्याय 'नेचुरल'
पिथोरागढ़, उत्तराखंड
(रचनाकार,लेखक,विज्ञान प्रचार -प्रसारक,स्वतंत्र लेखन,शिक्षण,समाज सुधारक)


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